Visitors
धर्म जीने देने के लिए है,मिटाने के लिए नहीं......!!
शनिवार, 15 अगस्त 2009
धर्म जीने देने के लिए है,मिटाने के लिए नहीं......!!
सच कहूँ तो इस्लाम क्या,अपितु सभी धर्मों को आत्म-मंथन की तत्काल ही गहन आवश्यकता है,अगर यह समयानुकूल नहीं हो पाया तो समय इसे ग्रस लेने वाला है,सच कहूँ तो टिप्स मेरे पास भी हैं,मगर इस्लाम के अनुयायी-मौलवी आदि किसी भी टिप्स को स्वीकार करने में अपनी हेठी समझते हैं....दरअसल आदमी का अंहकार कभी आदमी को आदमी नहीं बना रहने देता !!
वह अपने ही दुर्दमनीय हाथों का शिकार हो जाता है,इस्लाम आज एक ऐसे मुकाम पर है,जहां से उसे बदलने की तत्काल आवश्यकता है....जैसा कि हर धर्मों में होता आया है...जैसा कि हम जानते हैं,ये सारी चीज़ें इंसान की ही बनायीं हुई हैं....जैसा कि प्रकृति का अपरिवर्तन-शील नियम ही है...सतत परिवर्तन-शीलता...अगर इंसान इसको ना माने तो पीछे मिट चुकी अनेकानेक चीज़ों और जातियों की तरह उसे भी मिट जाना है......इंसान का असल ध्येय है इंसान होकर जीना....और परमेश्वर की कल्पना उसके इसी ध्येय का एक माध्यम !! परमेश्वर है भी तो आपको उसके एक अंश होकर ही जीना है....और उसके अंश की तरह जीने के लिए अपनी ही रूढ़ पड़ चुकी मान्यताओं की बलिवेदी पर इंसान को मौत अपनाने पर विवश कर देना,यह किसी भी धर्म का ना तो कभी उद्देश्य था...और ना कभी हो भी सकता है....अल्लाह हो या भगवान्....इंसान के जीवन में इनकी महत्ता इंसान की सोच को अपार विस्तार प्रदान करने की होनी चाहिए....बेशक दुनिया में कईयों तरह के धर्म गढ़ लिए जाएँ....मगर धर्म के पागलपन की जगह इंसान होने का पागलपन,एक सच्चे इंसान होने का पागलपन अगर इंसान पर तारी हो सके...अगर अल्लाह या भगवान् के बन्दे अल्लाह और भगवान् के अन्य बन्दों को हंसा सके....उनका दुःख दूर करने को अपने जीवन का उद्देश्य बना सकें....तब तो इंसान होने का कोई अर्थ है....इंसान होने में कोई गरिमा है....और भगवान या अल्लाह के वजूद की कोई सार्थकता......!!मगर यह क्या कि अल्लाह या भगवान् ने आपको भेजा तो है जीने और दूसरों को जीने देने के लिए....और आप यहाँ आकर जीवन को मेटते ही जा रहे हो आप शब्दों की जुगाली में जीवन की गरिमा को नष्ट किये जा रहे हो.... कोई गेरुआ...कोई हरा झंडा उठाये बस एक दुसरे को भयभीत किये जा रहा है....यह सब क्या है....??....क्या यही है जीवन.....आधी आबादी यानि स्त्री जात को आप उसका यथोचित सम्मान से वंचित ही नहीं कर रहे....बल्कि उसे कदम-कदम पर अपमानित करते उसे मौत सरीखा जीवन जीने पर विवश किये हुए हो....यह सब क्या है....तरह-तरह की थोथी मान्यताओं आड़ लेकर इंसान के जीवन को तरह-तरह से प्रताडित किये जा रहे हो..यह सब क्या है...??...अगर सच में ही तुम सबके जीवन का उद्देश्य प्रेम ही है,तो वह सिर्फ तुम्हारे पुराणों और कुरानों में शब्दों तक ही सीमित है क्या....वह तुम्हारे जीवन में कब तलक उतरेगा....तुम्हारा जीवन कुरानानुकुल-पूरानानुकुल कब तलक संभव होगा....तुम्हारे मौलवी और पंडित कब एक दुसरे से हाथ मिलायेंगे.....??तुम्हारे जीवन में कब मानवता का उजाला होगा....??जिसे तुम वाकई प्रेम कहते हो,प्रेम समझते हो,वह जैसा भी हो,वह कब तुम्हारे जीवन को असीम ब्रहामान्दनीय-ब्रहमांडनीय चेतना से पुलकित करेगा....??तुम कब मनुष्य जीवन में अपने मानव होने का यथेष्ट योगदान दोगे....??......कुरान और पुराण के समुचित अर्थ को कब अकथनीय विस्तार दोगे....??जीवन एक बहता हुआ दरिया है दोस्तों....धरम अगर तरह-तरह के दरियायों के नाम हैं....तो इंसान होना इक विराट समुद्र....अगर तुम यह समुद्र हो सको तो सारे धरम तुम्हारे भीतर ही सिमट जायेंगे....और अगर यूँ ही दरिया की तरह उफनते रहे तो समूची मनुष्यता तुम्हारी हिंसा की बाढ़ में विनष्ट हो जायेगी....तुम्हें क्या होना है....यह अब तुम्ही तय करो....ओ मनुष्यों.....यह बात इक भूत तुम्हें तार-तार रोता हुआ बोल रहा रहा है....बोले ही जा रहा है....बोलता ही रहेगा....!!!!
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
7 टिप्पणियां:
बात सुसंगत है तर्क सहित है जन हित में है मानव कल्यानमय है मगर आप भी जानते है और मैं भी मणी नहीं जायेगी
मानी की जगह मणी टाईप हो गया है अब सुधारना मुझे आता नहीं है
भूत पूछ रहा है हम कब इंसान बनेंगे ...भावपूर्ण रचना...!!
बहुत सुंदर रचना! इस बेहतरीन और उम्दा रचना के लिए बधाई!
vaise bhooton se pyar karna aasan nahi hota...
aapane achha likha hai, lekh me apki achhi soch jhalkti hai
bhootnath ji...jaisa aap bhoot ho kar soch kar soch rahe hain waisa agar log insaan reh kar soch lein to duniya jeene ke liye aek behtar jagah ban jayegi...
सार्थक विवेचन।
( Treasurer-S. T. )
एक टिप्पणी भेजें