मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
उफ़ यूँ भी होता तो क्या होता
गर्द से भरा मेरा चेहरा होता !!
इतने लोगों का यही है फ़साना
इस भरी भीड़ में तनहा होता !!
बावफा होकर भी यही है जाना
इससे बेहतर था बेवफा होता!!
तिल-तिल मरने से तो अच्छा है
जहर खा लेने से फायदा होता !!
अक्सर गम में हम ये सोचा किये
मेरे बदले यां कोई दूसरा होता!!
अच्छा इस बात को भी जाने दो
कि यूँ भी होता तो क्या होता !!
अच्छा हुआ कि तनहा गुजर गया
भीड़ में मरता तो क्या माजरा होता !!
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उफ़ !!यूँ भी होता तो क्या होता...??
मंगलवार, 2 जून 2009
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1 टिप्पणी:
bahut shaandar aur khoobsurat rachana .muhje aachchhi lagi .
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