वक्त की धरती पर
लम्हों के निशाँ
कभी नहीं बनते !!
लम्हे तो वैसे ही होते हैं
जैसे समंदर की छाती पर
अलबेली-अलमस्त लहरें
शोर तो बहुत करती आती हैं
मगर अगले ही पल
सब कुछ ख़त्म !!
आदमी
आदमी बोलता बहुत है
सच बताऊँ !!
आदमी अपनी बोली में
झगड़ता बहुत है !!
सुख
सुख पेड़ की मीठी छावं है
मगर मिलती है वह
धरती के बहुत गहरे से
जड़-तना-डाली-पत्ते बनकर
बहुत बरसों बाद !!
चूहा
आदमी !!
एक बहुत बड़ा चूहा है
जो खाता रहता है
दिन और रात
धरती को कुतर-कुतर
रेपिस्ट
आदमी !!
एक बहुत बड़ा रेपिस्ट है
जो करता है
हर इक पल
धरती का स्वत्व-हरण
और देता है उसे
अपना गन्दा और
दुर्गंधमय अवशिष्ट-अपशिष्ट !!
.............!!
आदमी के अवशिष्ट से
कुम्भला और पथरा गई है धरती
और आदमी सोचता है
कि वही महान है !!
................!!
आदमी !!....सचमुच......
है तो बड़ा ही महान
और उसकी महानता
बिखरी पड़ी है
धरती के चप्पे-चप्पे पर.....!!
और बढती ही चली जा रही है
ये महानता...पल-दर-पल....
और बिचारी धरती....
सिकुड़ती ही चली जा रही है
इस महानता के बर-अक्श ....!!
और मजा यह कि
आदमी कभी अपने-आपको
रेपिस्ट समझता ही नहीं.....!!
वक्त
वक्त.....
इक छोटा-सा मगर
बड़ा ही शैतान-सा बच्चा है !!
जो हर समय
क्षणों की डाली से
लम्हों के फल
तोड़ता रहता है
कभी थकता ही नहीं !!
अपने आगे वक्त
अक्सर ख़ुद ही
छोटा पड़ जाता है !!
6 टिप्पणियां:
वक्त की धरती पर
लम्हों के निशाँ
कभी नहीं बनते !!
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अपने आगे वक्त
अक्सर ख़ुद ही
छोटा पड़ जाता है !!
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बहुत खूब हैं ये छोटी कवितायेँ
Aadmi.... bolta bahut hai...kitna sach likha hai apane... aaj kal chunaav prachaar ke dauraan yehi dikhai deta hai...
baatein to thik hi hain ......par lagta nahi kuchh jyadati kar rahein hain aap.
अरे वाह, एक साथ इतनी ढेर सारी क्षणिकाएँ। पढकर अच्छा लगा।
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जादू की छड़ी चाहिए?
नाज्का रेखाएँ कौन सी बला हैं?
सुख पेड़ की मीठी छावं है
मगर मिलती है वह
धरती के बहुत गहरे से
जड़-तना-डाली-पत्ते बनकर
बहुत बरसों बाद !!
-बहुत सुन्दर कविताएँ प्रस्तुत की हैं. साधुवाद.
अच्छी क्षणिकाएं हैं...युगातीत प्रश्नों को सामने लाती हुईं...ऐसे ही लिखते रहें.
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