पता नहीं क्यूँ उसके वादे पर करार रहा
वो झूठा था पर उसपे मुझे ऐतबार रहा !!
दिन-भर मेहनत ने मुझे दम ना लेने दिया
और फिर रात भर दर्द मुझसे बेहाल रहा !!
अजीब यह कि जो खेलता था,अमीर था
और जो मेहनत-कश था,वो बदहाल रहा !!
सच मुहँ छुपाये कचहरी में खडा रहता था
झूठ अन्दर-बाहर सब जगह वाचाल रहा !!
कई बार सोचा कि मैं ही अपना मुहं खोलूं
और लोगों की तरह मैं भी हलकान रहा !!
Visitors
और लोगों की तरह मैं भी हलकान रहगा....!!
सोमवार, 13 अप्रैल 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
सच मुहँ छुपाये कचहरी में खडा रहता था
झूठ अन्दर-बाहर सब जगह वाचाल रहा !!
बहुत सुन्दर.....
नमस्ते भूतनाथ जी!
यहां तक आपका लिखा सब पढ डाला. मुझे आपकी अभिव्यक्ति बहुत पसंद आई. सच मानिये कि ये आपके द्वारा की गयी मेरी तारीफ़ के बदले मे नही कह रही हूं, बल्कि आपके ब्लॊग तक कभी पहुंची ही नही थी...
एक बात और- आपको एक ब्लॊग ( मेरी मित्र के )पर देख कर चकित हूं! आप सच के भूत लगते हैं :) :).
एक टिप्पणी भेजें