जुर्म किए थे इतने,चदरिया झीनी पड़ गई
उम्र भी कमबख्त आख़िर दीन्ही पड़ गई !!
था शुक्र मुझपे इतना कि खुशियों का हाय
कुछ ख़ुशी कम करने को पीनी पड़ गयी !!
पता नहीं क्यूँ ऊपर वाले ने भेजा मुझे यहाँ
जिन्दगी जीने की खातिर जीनी पड़ गयी !!
लानत है मुझपे कि वक्ते-हयात पिया न गया
जन्नत में खुदा के साथ को पीनी पड़ गयी !!
मैं अपने साथ लाया था कुछ सुख की शराब
ना चाहते हुए भी आदम को पीनी पड़ गयी !!
मैं अपनी कब्र पे बैठा सोचा किया "गाफिल"
ये कैसी जिन्दगी थी जो मुझे जीनी पड़ गयी !!
२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२
२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२
प्यार की इन्तेहाँ उरियां हो
जैसे इक नदिया दरिया हो !!
इक पल में फुर्र हो जाती है
उम्र गोया उड़ती चिडिया हो !!
तुझसे क्या-क्या मांगता हूँ
तेरे आगे अल्ला गिरिया हो !!
मैं तो चाहता ही हूँ कि मुझसे
हर इक ही इंसान बढ़िया हो !!
सुख-दुःख गोया ऐसे भईया
गले में हीरों की लड़ियाँ हों !!
तुमसे कहना चाहता हूँ ये मैं
तुम बढ़िया हो बस बढ़िया हो !!
इतना बढ़िया जी जाऊं"गाफिल"
अल्ला भी कहे कि बढ़िया हो !!
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ये कैसी जिन्दगी मुझे जीनी पड़ गई.....!!
शनिवार, 11 अप्रैल 2009
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1 टिप्पणी:
इतना बढ़िया जी जाऊं"गाफिल"
अल्ला भी कहे कि बढ़िया हो !!
मैं अपनी कब्र पे बैठा सोचा किया "गाफिल"
ये कैसी जिन्दगी थी जो मुझे जीनी पड़ गयी !!
pahli baar aayaa aapke blog par aour santusht hua...
aapki do rachna ki antim do panktiya..jisme virodhabhaas jaroor he kintu poori rachna yaa kahe gazal ki jaan he..
aour aapki hi pankti aapke liye ki
तुमसे कहना चाहता हूँ ये मैं
तुम बढ़िया हो बस बढ़िया हो !!
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