तनहा-तनहा जलता रहता हूँ
पर किसी का मैं क्या लेता हूँ !!
मुझमें तो हर कोई शामिल है
सबकी बातें कहता रहता हूँ !!
सबके गम तो मेरे मेरे गम हैं
सबके दुखडे सुनता रहता हूँ !!
सबमें खुद को शामिल करके
और सब खुद ही हो जाता हूँ !!
सबका दुखः मैं रोता रहता हूँ
अन्दर-अन्दर बहता रहता हूँ !!
सबको बेशक कुछ मुश्किल है
मुश्किल का मैं हल कहता हूँ !!
मुझमें कौन बैठा है "गाफिल"
सबसे जुड़कर क्यूँ रहता हूँ !!
पर किसी का मैं क्या लेता हूँ !!
मुझमें तो हर कोई शामिल है
सबकी बातें कहता रहता हूँ !!
सबके गम तो मेरे मेरे गम हैं
सबके दुखडे सुनता रहता हूँ !!
सबमें खुद को शामिल करके
और सब खुद ही हो जाता हूँ !!
सबका दुखः मैं रोता रहता हूँ
अन्दर-अन्दर बहता रहता हूँ !!
सबको बेशक कुछ मुश्किल है
मुश्किल का मैं हल कहता हूँ !!
मुझमें कौन बैठा है "गाफिल"
सबसे जुड़कर क्यूँ रहता हूँ !!
2 टिप्पणियां:
भाव बहुत सुन्दर हैं।बधाई।
मुझमें कौन बैठा है "गाफिल"
सबसे जुड़कर क्यूँ रहता हूँ !!
ये अलग किस्म का दर्द है -बोले तो अंदर -अंदर घुटता रहता हूँ .लेकिन आप को बधाई एक उम्दा रचना के लिए .
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