क्या कहें क्या पता !!
कैसी ये आरजू ,क्या कहें क्या पता !
तेरे इश्क में हम, हो गए लापता !!
चलते-चलते मेरी, गुम हुई मंजिलें
जायेंगे अब कहाँ,क्या कहें क्या पता !!
तेरे गम से मेरी,आँख नम हो गयीं
कितने आंसू गिरे,क्या कहें क्या पता !!
सुबो से शाम तक,ख़ुद को ढोता हूँ मैं
जान जानी है कब,क्या कहें क्या पता !!
नज्र कर दी तुझे,जिन्दगी भी ये मेरी
करना है तुझको क्या,क्या कहें क्या पता !!
उफ़ मैं भी "गाफिल"हूँ हाय बड़ा बावला
ढूंढता हूँ मैं किसे,क्या कहें क्या पता !!
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पिघलता है कुछ तो...
पिघलने दो ना.....
महकता है मन जो....
महकने दो ना....
दरकता है कुछ भीतर धीरे-धीरे......
बनता है कुछ मन में हौले-हौले....
दर्द को भीतर से बाहर जो निकाला है....
दरीचे से इक शोर निकला है....
शोर में भी इक चुप्पी है....
जरा सा तो रुक जाओ....
इस चुप्पी के अर्थों को हमें भी समझने दो ना.....!!००००००
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क्या कहें क्या पता !!
सोमवार, 23 फ़रवरी 2009
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5 टिप्पणियां:
उफ़ मैं भी 'गाफिल' हूँ हाय बड़ा बावला
ढूँढता हूँ मैं किसे क्या कहें क्या पता
दिल के जज़्बात की सही तर्जुमानी करता हुआ
ये शेर बहुत अच्छा लगा ......
सारी ग़ज़ल दिलचस्प है . . . . .
बधाई . .. . .
---मुफलिस---
तेरे गम से मेरी,आँख नम हो गयीं
कितने आंसू गिरे,क्या कहें क्या पता !!
--बहुत उम्दा!!
बहुत सुंदर लिखा है...महा शिव रात्रि की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं..
तेरे गम से मेरी,आँख नम हो गयीं
कितने आंसू गिरे,क्या कहें क्या पता !!
sher khaas pasand aaya.
bahut hi sundar gazal likhi hai..
महाशिवरात्रि की शुभकामनायें.
शानदार।
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