ख्वाब को ख्वाब ही बना रहने दो.....ख्वाब कोई आग ना बन जाए कहीं !!आग के जलते ही तुम बुझा दो इसे सब कुछ ही ख़ाक ना हो जाए कहीं !!अपने मन को कहीं संभाल कर रख तेरे दामन में दाग ना हो जाए कहीं !!तेरी जानिब इसलिए मैं नहीं आता !!मेरी नज़रें तुझमें ही खो जाए ना कहीं !!खामोशी से इक ग़ज़ल कह गया"गाफिल"इसके मतलब कुछ और हो जाए ना कहीं !!////////////////////////////////////////ऐसा भी हो जाता है जब कि शब्द नहीं आते.....आ भी जाए तो फिर आकर कहीं नहीं जाते.....किसने समझा है इन शब्दों के मतलब को....किसी की समझ में ये मतलब ही नहीं आते.....शब्दों...
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मंगलवार, 24 फ़रवरी 2009
ख्वाब कोई आग ही बन जाए कहीं....!!
पिघलता है कुछ तो...पिघलने दो ना.....महकता है मन जो....महकने दो ना....दरकता है कुछ भीतर धीरे-धीरे......बनता है कुछ मन में हौले-हौले....दर्द को भीतर से बाहर जो निकाला है....दरीचे से इक शोर निकला है....शोर में भी इक चुप्पी है....जरा सा तो रुक जाओ....इस चुप्पी के अर्थों को हमें भी समझने दो ना.......
मंगलवार, 24 फ़रवरी 2009
क्या कहें क्या पता !!
क्या कहें क्या पता !!कैसी ये आरजू ,क्या कहें क्या पता !तेरे इश्क में हम, हो गए लापता !!चलते-चलते मेरी, गुम हुई मंजिलें जायेंगे अब कहाँ,क्या कहें क्या पता !!तेरे गम से मेरी,आँख नम हो गयीं कितने आंसू गिरे,क्या कहें क्या पता !!सुबो से शाम तक,ख़ुद को ढोता हूँ मैं जान जानी है कब,क्या कहें क्या पता !!नज्र कर दी तुझे,जिन्दगी भी ये मेरी करना है तुझको क्या,क्या कहें क्या पता !!उफ़ मैं भी "गाफिल"हूँ हाय बड़ा बावला ढूंढता हूँ मैं किसे,क्या कहें क्या पता !!००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००पिघलता है कुछ तो......
रविवार, 22 फ़रवरी 2009
एक दिन ब्लोगरों का.......!!
दिनांक २२-०२-२००९,स्थान-कश्यप आई मेमोरियल हॉस्पिटल सभागार,रांची (झारखंड)डाक्टर भारती कश्यप,श्री शैलेश भारतवासी,श्री घनश्याम श्रीवास्तव,श्री मनीष कुमार...........तथा अन्य लोगों के सहयोग से पूर्वी क्षेत्र के ब्लोगरों (यानि चिट्ठाकारों)का जमावडा यानि सम्मलेन एक बेहद अनौपचारिक माहौल में हँसी-खुशी भरे होलियाना अंदाज़ में अभी थोडी ही देर पहले संपन्न हुआ....!!स्थानीय पत्र रांची एक्सप्रेस के संपादक श्री बलबीर दत्त जी,दैनिक आज के संपादक श्री दिलीप जी ,स्वयं डॉ. भारती जी ब्लोगिंग की बाबत अपने विचारों से सभी...
शनिवार, 21 फ़रवरी 2009
हाय समाज...........हाय समाज............!!
हाय समाज...........हाय समाज............!! ............न पुरूष और न ही स्त्री..............दरअसल ये तो समाज ही नहीं.........पशुओं के संसार में मजबूत के द्वारा कमजोर को खाए जाने की बात तो समझ आती है......मगर आदमी के विवेकशील होने की बात अगर सच है तो तो आदमी के संसार में ये बात हरगिज ना होती.......और अगरचे होती है.....तो इसे समाज की उपमा से विभूषित करना बिल्कुल नाजायज है....!! पहले तो ये जान लिया जाए कि समाज की परिकल्पना क्या है.....इसे आख़िर क्यूँ गडा गया.....इसके मायने क्या हैं....और इक समाज में आदमी होने के मायने...
शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009
मेरे शहर का एक आदमी..........!!
मेरे शहर का एक आदमी.............!! ..........कब,क्या,क्यूँ,कैसे.........और किस परिणाम की प्राप्ति के लिए होता है......ये किसी को भी नहीं पता.......!!हर कदम पर कईयों भविष्यवक्ता मिलते हैं.....लेकिन अगर आदमी भविष्य को पढ़ ही पाता....तो दुनिया बेरंग ही हो जाती.....!!अभी-अभी हम घर से कहीं जा रहे हों.........और अचानक कहीं किसी भी वक्त हमारे जीवन के सफर का अंत ही हो जाए....!!अभी-अभी हम जिससे मिलकर आ रहे हों........घर पहुँचते ही सूचना मिले कि वो शख्स अभी दस मिनट पहले दुनिया से कूच कर गया........!!हमें...
गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009
हाय समाज...........हाय समाज............!!
............न पुरूष और न ही स्त्री..............दरअसल ये तो समाज ही नहीं.........पशुओं के संसार में मजबूत के द्वारा कमजोर को खाए जाने की बात तो समझ आती है......मगर आदमी के विवेकशील होने की बात अगर सच है तो तो आदमी के संसार में ये बात हरगिज ना होती.......और अगरचे होती है.....तो इसे समाज की उपमा से विभूषित करना बिल्कुल नाजायज है....!! पहले तो ये जान लिया जाए कि समाज की परिकल्पना क्या है.....इसे आख़िर क्यूँ गडा गया.....इसके मायने क्या हैं....और इक समाज में आदमी होने के मायने भी क्या हैं....!! ..............समाज किसी आभाषित...
सोमवार, 16 फ़रवरी 2009
हे ईश्वर !!मैं किसे कम या बेशी आंकू...!!
हे ईश्वर !!मैं किसे कम या बेशी आंकू...!! हे ईश्वर !!मनुष्यता का भला चाहने वाले लोग इतने सुस्त और काहिल क्यूँ हैं....जबकि इसी का खून करने वाले देखो ना कितनी मुस्तैदी से अपना काम निपटाया करते हैं....!!हे ईश्वर !!मनुष्यता....मनुष्यता...और मनुष्यता की बातें करने वाले सिर्फ़ बातें ही क्यूँ करते रह जाते हैं....अगरचे इसी का हरण करने वाले दिन-रात इसका चीरहरण करते रहते हैं...!!हे ईश्वर !!मनुष्यता को सम्भव बनाने वाले लोग सदा यही क्यूँ सोचते रहते हैं किमनुष्यता कायम करना बड़ा ही कठिन है...जबकि दरिंदगी से इसकी हत्या करने वाले...
सोमवार, 16 फ़रवरी 2009
सुनो......सुनो......सुनो.......ब्लोगर बंधुओं सुनो......!!
धम.....धम......धम......सुनो.....सुनो......सुनो.....ये बात बड़े ध्यान से सुनो......धम....धम.......धम.......सभी ब्लोगर बंधुओं अपने-अपने कान खोल कर सुनो....!! साथियो,यह बहुत हर्ष की बात है कि २२ फरवरी को आयोजित होने वाले राँची ब्लॉगर सम्मेलन को आप सभी ने बहुत गंभीरता और उत्साह से लिया है। हम चाहते हैं कि कार्यक्रम से सभी आगंतुक ब्लॉगरों का सीधा जुड़ाव हो और इसकी विविधता बनी रहे, इसलिए यह ज़रूरी है कि ऐसे ब्लॉगर जो ब्लॉगिंग में नियमित हैं, कम से कम वे सभी अधिकतम ५ मिनट में ब्लॉगिंग से जुड़ने का कारण और अब तक का अनुभव...
बुधवार, 11 फ़रवरी 2009
अंहकार का गणित जीवन को नष्ट कर देता है....!!
अंहकार और मुर्खता एक दूसरे के पर्याय होते हैं.....मूर्खों को तो अपने अंहकार का पता ही नहीं होता....इसलिए उनका अहंकारी होना लाजिमी हो सकता है मगर...अगर एक बुद्धिमान व्यक्ति भी अहंकारी है तो उससे बड़ा मुर्ख और कोई नहीं....!! जिस भी किस्म लडाई हम अपने चारों तरफ़ देखते हैं....उसमें हर जगह अपने किसी न किसी प्रकार के मत...वाद....या प्रचार के परचम को ऊँचा रखने का अंहकार होता है.....इस धरती पर प्रत्येक व्यक्ति...समूह....धर्मावलम्बी....राष्ट्र...यहाँ तक कि किसी भी भांति का कोई भी आध्यात्मिक...
रविवार, 8 फ़रवरी 2009
ना जाने यहाँ क्या क्या तो हम देखते हैं...!!
इस धरती पर आकर जनम-जनम देखते हैंहम तो यहाँ दुश्मनों में भी सनम देखते हैं !!कहीं मौत और कहीं जीवन के सुरीले गीतना जाने यहाँ क्या-क्या तो हाय हम देखते हैं !!किसी से भी मिला लेते हैं हम अपनी नज़रकोई देख रहा है किधर,ये भी हम देखते हैं !!पहले सोचते हैं कि दुनिया बड़ी ही अच्छी हैफिर दुनिया की बाबत अपने भरम देखते हैं !!इस कायनात में ना जाने क्या-क्या बसा हैइस बसेरे में किसी का रहमो-करम देखते हैं !!रब के घर जाकर हम क्या करेंगे "गाफिल""रब" के घर में तो हम अक्सर "आदम" देखते हैं !!...
शनिवार, 7 फ़रवरी 2009
मन बहुत पगला रहा है....!!
मन बहुत अकुला रहा है...ख़ुद को अभिव्यक्त ही कर पा रहा है....शरीर इक शव बन गया है...और दिल भी पत्थर हुआ जा रहा है....जिनको सौंप कर अपना कीमती इक-इक वोट निश्चिंत हो गए हैं एकदम से हम...वही हर इक शख्स....हमारे चिथड़े-चिथड़े कर रहा है...और हमारी चिन्दियाँ-चिन्दियाँ.....नोच-नोच कर खाए जा रहा है....दिन भर की कसरत के बाद भी....किसी को नसीब नहीं बीस रुप्पल्ली....बीस-बीस हज़ार माहवार पाने वाला कामगार....राज-ब-रोज हड़ताल पर जा रहा है.....मेरे आस पास ये भूखे...नंगे और बदहाल लोगों की भीड़-सी कैसी है.....मेरा देश तो बरसों से ही शाईनिंग...
गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009
मेरी तस्वीर को सीने से लगाता क्यूँ है...!!
मुझसे ना मिलने की कसम खाता क्यूँ है ?मेरी तस्वीर को सीने से लगाता क्यूँ है ?अनदिखा सा रहता है क्यूँ मुझको यारबऔर लोगों से मिरा दीदार कराता क्यूँ है ?वक्त मरहम है,दिल को तसल्ली देता है,गरतो फ़िर वो हमें खंजर चुभाता क्यूँ है ?दिल को मेरे भी जरा तपिश तो ले लेने देसाए से मेरे धुप चुरा कर ले जाता क्यूँ है ?हश्र तक भी जो पूरे ना हों ऐसे मिरे यारबसपने हम सबको दिखाता है,दिखाता क्यूँ है ?तेरे चक्कर में घनचक्कर हुआ हूँ मैं "गाफिल"मेरी मर्ज़ी के खिलाफ मुझे चलाता क्यूँ है ?००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००एक...
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