भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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बुधवार, 31 दिसंबर 2008

आहा नया साल.......२००९.........!!??

मुझे नहीं पता ...................धरती के बहुत ही प्यारे-प्यारे दोस्तों ...............मुझे ये कतई नहीं पता कि आने वाला नया वर्ष किसके लिए कैसा है.....मगर जैसा कि हम सबकी तहेदिल से यही इच्छा होती है कि सब खुश रहे........आनंदित रहें.......सुकून से रहें.......और इसी के वास्ते हम सबको शुभकामना देते हैं...........और सबके आगामी दिवसों के प्रति मंगलदायक विचार प्रेषित करते हैं....और बदले में हमें भी वही सब तो मिलता है....जो हम दूसरों...
शनिवार, 27 दिसंबर 2008

होता है शबो-रोज़ तमाशा मेरे आगे.....!!!

एक भाई ने आज ग़ालिब की याद दिला दी.....और जिक्र ग़ालिब का आते ही मैं बावला सा हो जाता हूँ......आज से कोई बीस साल या उससे भी कहीं पहले दीवाने-ग़ालिब को अपने हाथों से अपनी डायरी में सधे हुए हर्फों में उकेरा था.....तब से कितने ही मौसम आए-गए.....मैं उन्हें गुनगुनाता ही रहा....बरसों बाद गुलज़ार साहब के मिर्जा ग़ालिब में नसरुद्दीन शाह.....जगजीत सिंह....और ख़ुद गुलज़ार जैसे एकमेक हो गएँ.....तीनो की आवाजें जैसे ग़ालिब की आवाजें बन गयीं....और...
शनिवार, 27 दिसंबर 2008

मैं कौन हूँ.....!!?? भूत....!! और क्या.....!!

bhoothnath said...हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-.................मैं भूत बोल रहा हूँ........!!मुझे नहीं जानते..........??अरे दुष्ट...........हमेशा खुश-सी रहने वाली इस आत्मा को तुम नहीं जानते.....?? हमसे दूर हो जाने वाले ओ प्यारे से शख्स...........हमने कभी अपनी यादें नहीं बिसराई..........ब्लॉग नहीं देखता था...तब भी तुम याद थे....मैंने अपनी खुशनुमा पलों को बार-बार-बार-बार जिया है....इस बहाने अपने अतीत को फ़िर से पिया है.....मेरे अतीत में...
शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008

अब यहाँ और नहीं....बस....!!

................हा॥हा।हा...हा॥हा.....आज से इस जगह पर वीराना छा जाएगा......और सन्नाटा गूंजेगा.....सरसराती हुई हवा गुजरेगी....और इस खाली हुई जगह पर धूल का बवंडर उडाती हुई घूमा करगी.....यहाँ अब भूतनाथ कदमताल नहीं करेगा....!!..........उसकी इक आहट तक सुनाई नहीं देगी.....यहाँ जो भी आएगा....यही सोचेगा की ये काला-काला ब्लॉग......बिचारा भूतनाथ....अच्छा हुआ जो दुःख-भरी दुनिया से चला गया....और रहता तो हमारी तरह और रोता....बताऊँ क्यूँ जा...
गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

आदमी की इज्ज़त कुछ और होती है.....!!

भई बनी हुई चीजों की जीनत कुछ और होती है......और टूटी हुई चीजों की कीमत कुछ और होती है.....!!मर-मर कर जीना तो बहुत ही आसान है ऐ दोस्त....जिंदादिल लोगों की तो हिम्मत कुछ और होती है.....!!एक ही बार तो आता है आदम यहाँ धरती पर.....बनकर रहे आदम ही तो रिवायत कुछ होती है....!!हम गाफिल लोग ही रहते हैं आदतों के बाईस........और फकीरों की तो हाजत ही कुछ और होती है...!!जो "धन"को जीते हैं उनका चेहरा होता है कुछ और .......प्यार बांटने वालों की...
गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

अरे भाई...जिंदगी तो वही देगी....जो...........!!

हम क्या बचा सकते हैं...और क्या मिटा सकते हैं......ये निर्भर सिर्फ़ एक ही बात पर करता है....कि हम आख़िर चाहते क्या हैं....हम सब के सब चाहते हैं....पढ़-लिख कर अपने लिए एक अदद नौकरी या कोई भी काम....जो हमारी जिंदगी की ज़रूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त धन मुहैया करवा सके....जिससे हम अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें...तथा शादी करके एक-दो बच्चे पैदा करके चैन से जीवन-यापन कर सकें...मगर यहाँ भी मैंने कुछ झूठ ही कह दिया है....क्यूंकि अब...
बुधवार, 17 दिसंबर 2008

गरीबी....महसूसना कैसा होता है........????

गरीबी को देखा भी है....और महसूस भी किया है.....मगर इन दोनों बातों और ख़ुद के भोगने में बहुत अन्तर है....इसलिए गरीबी जीना....और महसूस करने में हमेशा एक गहरी खायी बनी ही रहेगी....लाख मर्मान्तक कविता लिख मारें हम....किंतु गरीबी को वस्तुतः कतई महसूस नहीं कर सकते हम...बेशक समंदर की अथाह गहराईयाँ नाप लें हम....!!!क्या है गरीबी.....अन्न के इक-इक दाने को तरसती आँखें...? कि बगैर कपडों के ठण्ड से ठिठुरती देह....??कि शानदार छप्पनभोगों का...
मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

हे सुभाष !!अब हम क्या करें....???

हे सुभाष !! अब हम क्या करें......??आज रांची हल्ला में नदीम भाई की एक पोस्ट देखी अमेरिकी राष्ट्रपति बुश पर एक पत्रकार द्वारा जूता फेंके जाने को ग़लत ठहराने को लेकर....मुझसे रहा नहीं गया.....और उनको लिखी प्रतिक्रिया यहाँ भी चस्पां कर दी.....एक नागरिक की प्रतिक्रिया के रूप में ...सम्भव है कि मेरा गुस्सा नाजायज हो मगर प्रश्न तो यही है कि इलाज़ आखिर क्या है....उत्तर आखिर...
सोमवार, 15 दिसंबर 2008

एक बात कहनी थी आपसे...कहूँ...??

आप लाजवाब लिखते हो साहब....मगर ये इस ग़ज़ल में वो बात नहीं......जो बात...........आप समझ गए होंगे.....हम सबको सिर्फ़ बढ़िया है...और एक-दूसरे को बधाई ही देने से फुर्सत नहीं मिलती....मजा यह कि हर ब्लागर की हर रचना श्रेष्ट ही होती है.....मगर यह सच भी नहीं होता.........अब ब्लॉग जगत में इस बात की गुन्जायिश जरूरी हो गई है....कि रचनाओं पर सच में ही सारगर्भित टिप्पणियां हों...ना कि सिर्फ़-व्-सिर्फ़ प्रशंसा के भाव...........आपकी रचनाएँ...
शनिवार, 13 दिसंबर 2008

रात भर मैं पागलों की तरह कुछ सोचता रहा...!!

प्यार से गले लगाया जब सिसकती मिली रात....पास जब उसके गया तब सिमटती मिली रात...!!रात जब आँखे खुलीं उफ़ तनहा-सी बैठी थी रात...साँस से जब साँसे मिलीं तो लिपटती मिली रात !!रात को जब कायनात भी थक-थकाकर सो गई रात भर भागती फिरी बावली जगमगाती रात !!रात को इक कोने में मुझको गमगीं-सा पाकरसकपकाकर रोने लगी यकायक कसमसाती रात !!मैं दिखाता उसे नूर-ऐ-सबा,सौगाते-सुबह की झलक सुबह से पहले ही मगर सो गई वो चमचमाती रात रात जब रात का मन ना लगा तब...
शनिवार, 13 दिसंबर 2008

७५ वां दिन.....सौवीं पोस्ट....मुझे माफ़ करें....!!

चलते-चलते जब भी मैं साँस लेता हूँ .........इक लम्हा अपनी उम्र का रब को देता हूँ.....!!मैं तो अपने-आप से अक्सर चौंक जाता हूँ....मैं अपने-आप को अक्सर ही आवाज़ देता हूँ...!!मौत भी जब मुझसे मायूस हो लौट जाती है....ख़ुद ही उसकी चौखट पर मैं आहट देता हूँ...!!क्यूँ हो जाता है यारब मुझसे बिन-बात खफा जा ना अपनी उम्र तुझे मैं यूँ ही दान देता हूँ..!!क्यूँ धरती पे ला पटका है मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़...वो तो मैं हूँ फिर भी तुझपर अपनी जान देता...
शनिवार, 13 दिसंबर 2008

यादें क्यूँ आती हैं....??

बीते हुए लम्हे....गुजरे हुए पल.....बिखरी हुई यादें.....थोडी-सी कसक.....थोडी सी-सी महक....डूबी हुई कोई सिसकी....कोई खुशनुमा-सी शाम.....या दर्द में डूबा संगीत..........सुरमई से कुछ भीने-भीने रंग.....यादों से विभोर होता हुआ मन.......मचलती हुई कई धड़कनें....फड़कती हुई शरीर की कुछ नसें.....जाने क्या कहता तो है मन....जाने क्या बुनता हुआ-सा रहता है तन....बहुत दिनों पहले की तो ये बातें थीं......आज तक ये क्यूँ जलती हुई-सी रहती है....ये...
शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

पहली पंक्ति अभय जी की....!!

अभय मिश्रा भाई.............आपकी एक पंक्ति चुराई है....इस पर माफ़ करेंगे........करेंगे ना....पहली पंक्ति ही आपकी है....मुझसे रहा नहीं गया....मैंने भी...........आप समझ गए ना......!!जज़्बातों की राख में कोई तपिश नहीं होती......जिनके भीतर कुछ करने की जुम्बिश नहीं होती !!आदमी भूल गया है कि उसे कुछ करना भी है....वगरना जमीं पर उसकी पैदाईश हुई नहीं होती...!!हम खुशियों को भी संभालकर नहीं रख पाते....अगर ग़मों से हमारी आजमाईश हुई नहीं होती...!!अगर...
शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

ये कोई ग़ज़ल नहीं....!!

मैं मिन्नतें करता हूँ और करता है वो मुझसे तकरार है....कह नहीं सकता मगर मुझे अल्लाह से कितना प्यार है !!बहुत ही तेज़ हम चले कि,घड़ी की सुई भी पीछे छुट गई....वक्त का पता नहीं पर,मुआ ये किस घोडे पर सवार है....!!मुसीबतें कई तरह की हमारे साथ में हैं लगी ही हुईं शरीर से है बीमार कोई तो कोई मन से गया हार है !!बन गए मशीन हम और अपनी ही आदतों के गुलाम भी काम इतने कि हर कोई गोया दर्द की लहर पर सवार है...!!उडा रहा है हमारी ये पतंग कौन कितनी...
गुरुवार, 11 दिसंबर 2008

यार तू सबको कितना सताएगा....??

कुछ भी छिपाया ना जाएगा.....फिर भी पराया हो जायेगा....!!सबको ये इल्हाम है मगर....सबसे छिपाया ही जायेगा...!!आदम की तरह खुदा भी इक दिन मर जाएगा या मारा जाएगा !!सअबको है सबसे ही कुछ गिला तू किसको मुहब्बत करवाएगा ?अपनों से अपनों में मची जंग...फिर गैरों से क्या कह पायेगा...?ग़ज़ल के नाम पर यह बक-बकयार तू सबको कितना सताएगा !!तुम्हें लगे जो आसा ,वो कर लो...."गाफिल"तो मुश्किलें भगायेगा....
बुधवार, 10 दिसंबर 2008

आसमान का रंग....!!

अभी-अभी http://anjalianamika.blogspot.com/2008/11/blog-post_24.हटमल के ब्लॉग सफर पे एक पोस्ट देखी...जिसका सिर्फ़ शीर्षक था "आसमानी रंग" पोस्ट नहीं थी कोई.....मैंने आव ना देखा ताव...झटपट ये पोस्ट लिख डाली....अब साथी ही बताएँगे कि दिए गए शीर्षक के साथ यह चटपटी-सी पोस्ट कैसी है.....!!हे भगवान आसमान का रंग भी नहीं जानते ..........नीला.........और क्या......!!आसमान का रंग है नीला....पानी की तरह है ये गीला !!तारों की रंगत से तो ये हो...जाता...
बुधवार, 10 दिसंबर 2008

प्रेम अजर है...प्रेम अमर है.....!!

प्रेम अमर है....और अजर है.....प्रेम है पूजा...इसमें असर है....!!प्यार में डूबे....वो ही जाने....इसका कितना गहरा असर है!!नाम किसी का लेते ही हो...जाता है साँसों पे असर है...!!आँख से आँख मिलते ही इक आग का हो जाता गो बसर है!!तूफां में इक किश्ती हो जैसे आती-जाती हर-इक लहर है !!प्रेम में जीना हो या मरना...."गाफिल"अमृत या कि ज़हर है...
मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

क्या हत्या एक खेल है....!! न बाबा ना !!!

क्या बोलूं....क्या लिखूं मैं....कि मोशे का दर्द दूर हो सके.....वो पता नहीं कैसे..कब तलक दूर होगा....??जिंदा इंसानों को बेबात मौत की नींद सुला देने वाले लोग कैसे होते हैं....उनकी चमड़ी...उनका मांस...उनकी हड्डी....उनके उत्तक....उनका पेट...उनकी नसें....उनके पैर...उनके हाथ....उनका माथा....उनके दांत....उनकी जीभ... उनकी मज्जा...उनका लीवर...उनकी किडनी....उनकी आंत.....उनके तलवे.....उनकी हथेली.....उनकी ऊँगली.....उनके नाखून...............उनका.........खून.........उनका.........
मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

खेल फर्रुखाबाद का जारी है !!

इस नंगे-पन का कोई अंत नहीं है क्या......?एक कमीनापन यहाँ के माहौल पर तारी है.ये कमीनापन हम सब पर ही तो भारी है....!!इस कमीनेपन को हम कहाँ तक ढोएँ बाबा... ये कमीनापन कुछ लोगों की ख़ास सवारी है !!देश-राज्य-शहर किसी की कोई कीमत नहीं है...यहाँ हर कोई अपने जमीर का व्यापारी है !!देश पर मर-मिटने की कीमत है कुछ लाख..और ओलोम्पिक विजेता करोड़ों का खिलाड़ी है !!हर इक दफ्तरी काम में याँ इक घोटाला है....हर इक जगह खेल फर्रुखाबाद का जारी है...
मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

उत्तर हम ख़ुद हैं......!!

bhoothnath said... bhoothnath said... सारे प्रश्नों का जवाब मेरी समझ से एक ही है....वो है....भारत के इन कतिपय नेताओं.....नौकरशाहों.....और तमाम प्रकार के "देशद्रोहियों" टाइप के लोगों को सड़क पर नंगा करके इतने कौड़े..... इतने कौड़े......मारो की उनको नानी...दादी.....लक्कार्दादी....सब के सब याद आ जायें....हम सब भारतीयों को असल में अपने चरित्र की बाबत नए सिरे से सोचने की जरुरत है.....एक देश को मिसाल बनाने के लिए पहले तो ख़ुद को मिसाल...
रविवार, 7 दिसंबर 2008

इस थोडी-सी बिना पढ़ी-लिखी जगह पर......!!

एक ऊँचे से ताड़ के पेड़ पर........घने पत्तों वाली लम्बी डालियों के बीच.......थोडी-सी जगह पर.......खेल रही हैं कुछ गिलहरियाँ......फुदकती....उछलती..... मचलती.... दौड़ती....भागती......जरा-सी ही जगह पर........बिना लड़े और झगडे....मिल-जुल कर खेल रही हैं ये बिना पढ़ी-लिखी ये गिलहरियाँ.......!! ......................कई पेड़ हैं एक साथ खड़े हुए.....थोडी-सी ही जगह पर.......एक दूसरे के साथ हँसते और गपियाते हुए......तरह-तरह के पत्तों वाले.....तरह-तरह...
शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

ये क्या है....

...
मैं तो बहुत छोटा हूँ...मैं इस पर क्या लिखूं....,हाँ मगर सोचता हूँ...मैं तुझे नगमा-ख्वा लिखूं....!!एक चिंगारी तो मेरे शब्दों के पल्ले पड़ती नहीं...जलते हुए सूरज को अब मैं फिर क्या लिखूं.....??इक महीन सी उदासी दिल के भीतर है तिरी हुई...नहीं जानता कि इस उदासी का सबब क्या लिखूं...!!सुबह को देखे हुए शाम तलक मुरझाये हुए देखे..सदाबहार काँटों की बाबत लिखूं तो क्या लिखूं...??चाँद ने अक्सर आकर मेरी पलकों को छुआ है..इस छुवन के अहसास को...
बुधवार, 3 दिसंबर 2008

सवाल बड़ा दर्दनाक है......!!

एक भाई ने मेरे वृद्ध माँ-बाप को वृद्धाश्रम छोड़ने पर बहस की बात उठायी है...........मेरी समझ से बहस तो क्या हो अलबत्ता मैं ये जानने की चेष्टा अवश्य करना चाहता हूँ कि हमारी जिंदगी में बेशक चाहे जितनी मुश्किलें हों..... हमारी बीवी चाहे जैसी हो....हमारे माँ-बाप चाहे जितने गुस्सैल...सनकी...या किन्हीं और अवगुणों (हमारे अनुसार) से भरे हों....(बस व्यभिचारी ना हों...!!) मगर क्या हमें उन्हें छोड़ देना चाहिए....??क्या उन्हें वृद्धाश्रम या किसी और जगह पर फेंक देना चाहिए....??क्या किसी भी परिस्थिति या समस्या की बिना पर हमें उनसे...
बुधवार, 3 दिसंबर 2008

भेज दो बूढे माँ-बाप को वृद्धाश्रम में......!!

आजकल के बच्चे....!!क्या करें इन पर दबाव ही कित्ता सारा है....??कित्ता बोझ है...अपने एकाध बच्चों की परवरिश का...और मुई महंगाई ये भी तो पीछा कहाँ छोड़ती है...इसलिए बच्चे माँ-बाप को ही छोड़ देते हैं....बिचारे आज कल के बच्चे....और ये माँ-बाप....कित्ते तो तंगदिल हैं...कि जिन्हें वर्षों प्यार से पाला-पोसा है...उन्हें ही धिक्कारते हैं....छी-छी-छी ये कैसे माँ-बाप हैं जो अपने ही बच्चों की मजबूरी नहीं समझते.....!!.......इसलिए...
मंगलवार, 2 दिसंबर 2008

दो दिनों पूर्व.....इस माहौल पर.....!!

ये विकृत चेहरा किसका है.....??खून से सना...खून पीता....खून भरा....!!सबको खौफ दिलाता...,ये भयानक चेहरा किसका है....??आंखों में क्रूरता...भावों में दहशत...!!हाथों में ग्रेनेड.....बम....बन्दूक.....!!.ये दहशत-गर्द चेहरा किसका है....??सड़कों पे बिछाता खून......,किसी को बेवा..किसी को लावारिश...और किसी को बनाता मरहूम.....!सबको करता असहाय...ये कहर बरपाता चेहरा किसका है....??देता है ये अपनी कैफियत....कि ये उनका जेहाद है....!!उनपर हुए इतने...
सोमवार, 1 दिसंबर 2008

उधेड़-बुन (राहुल उपाध्याय के ब्लॉग से साभार !!)

About Me Rahul Upadhyaya राह चलते सबसे मिला/ हुआ नहीं किसी से गिला/ लगातार चले ये सिलसिला// उसी आस में जी रहा/ पानी घाट-घाट का पी रहा/ ध्वज मैं कोई लहराता नहीं/ यारों से मैं कतराता नहीं/ यहीं सच है कि मैं हूं एक सैलानी/ upadhyaya@yahoo.com Monday, December 1, 2008 मंज़र हिंदुस्तान के आओ यू-ट्यूब पर तुम्हें दिखाऊँविडियो हिंदुस्तान कीइस क्लिप पर क्लिक करोये क्लिप है जलते मकान कीवन डे यहाँ पर बमवन डे वहाँ पचास खतमये रहा वो ताज...
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