धर्म कभी-कभी किस तरह आदमी को पगला देता है,यह अभी कुछ दिन पूर्व मैंने देखा.मेरे एक विद्वान मित्र अचानक कुछ दिनों बाद मेरे पास आये और धर्म विषयक
चर्चा करने लगे,ऐसा जान पड़ता था कि वे किसी धर्म-विषयक संस्थान
में में कोई खास अध्ययन करके आये हैं,उनकी बौडी-लैंग्वेज और उनकी भाषा पूरी तरह लड़ाकू थीऔर उनके मुख से निकलने वाला प्रत्येक कथन जैसे एक आप्त-वाक्य और मजा तो यह था कि अपने हर
कथन को अविवादित मान कर चल रहे थे,क्योंकि वे तो धर्म-ग्रंथों...
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मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013
धर्म के नाम पर मर जाने वाले इंसान को शहीद नहीं कहते
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