मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
बहुत दिनों से दुनिया के तरह-तरह के धर्मग्रंथों-दर्शनशास्त्रों,धर्मों की उत्पत्ति-उनका विकास और भांति-भांति के लोगों द्वारा उनकी भांति-भांति प्रकार की की गयी व्याख्यायों को पढने-समझने-अनुभव करने की चेष्टा किये जा रहा हूँ,आत्मा-ईश्वर-ब्रह्माण्ड,इनका होना-ना होना,अनुमान-तथ्य-रहस्य-तर्क, तरह-तरह के वाद-संवाद और अन्य तरह-तरह विश्लेषण-आक्षेप तथा व्यक्ति-विशेष या समूह द्वारा अपने मत या धर्म को फैलाने हेतु और तत्कालीन शासकों-प्रशासकों द्वारा उसे दबाने-कुचलने हेतु किये...
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मंगलवार, 20 दिसंबर 2011
तो फिर कह दो कि ईश्वर नहीं है....नहीं है.....नहीं है....!!
रविवार, 11 दिसंबर 2011
माननीय सम्पादक महोदय,
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
माननीय सम्पादक महोदय,
आज सवेरे प्रभात खबर का सम्पादकीय पढ़ा,और तब से कुछ प्रश्नों से जूझ रहा हूँ,आपने लिखा "......यह एक तथ्य है कि भीड़ की ताकत संख्या होती है,विवेक नहीं. संसद के विवेक में देश के हर हिस्से से आये हुए जन-प्रतिनिधियों का (सामूहिक)विवेक शामिल होता है.जंतर-मंतर या किसी दूसरी जगह पर जुटी भीड़ का इस्तेमाल सांसदों के सामूहिक विवेक पर दबाव बनाने के लिए तो किया जा सकता है,फैसला लेने या फैसला सुनाने के लिए नहीं "
माननीय...
गुरुवार, 8 दिसंबर 2011
लोकतंत्र...!! हा...हा...हा...हा....क्यूँ मजाक करते हैं साहब !!
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
लोकतंत्र...!! हा...हा...हा...हा....क्यूँ मजाक करते हैं साहब !!
जब से सामाजिक मुद्दों पर सोचना-लिखना शुरू किया,या यूँ कहिये कि जबसे समाज के बारे समझने की उम्र हुई,तब से एक मुद्दा सदैव ज्वलंत मुद्दा बना रहा है मन में,वो यह है,भारत के लोग,उसकी समस्याएं,भारत का लोकतंत्र,लोकतंत्र के कारण पैदा हुई समस्याएँ और लोगों की मनोवृति के कारण लोकतंत्र में पैदा हो रही समस्याएं !!
भारत के अ-शिक्षित,अर्द्धसाक्षर लोकतंत्र...
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