भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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बुधवार, 26 अक्टूबर 2011

अन्धेरा हमारे आस-पास घिरता जा रहा है....!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!              आज,जैसा कि सब जानते हैं,दीवाली का पर्व है,और भारत देश में चारों और हैप्पी-दीवाली,हैप्पी-दीवाली के स्वर बोले जा रहें हैं...और इस पर्व को मनाने की तैयारियां भी चारों तरफ की जा रहीं हैं !सभी तरफ बाज़ारों में बेशुमार भीड़ है गोया कि हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी....और इस भीड़ के कारण हर तरफ जाम-ही-जाम भी है ! लोग खरीदारी-पर-खरीदारी किये जा रहें हैं !अभी...
मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011

रूहें खानाबदोश क्यूँ हुआ करती हैं.....??

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!             पता नहीं क्यूँ रूहें खानाबदोश क्यूँ हुआ करती हैं.....और ख्वाब क्यूँ आवारा....!!क्या हमारे भीतर किसी रूह का होना कहीं कोई ख्वाब ही तो नहीं....या कि हम कहीं ख़्वाबों को ही तो रूह नहीं समझ बैठे हैं....क्यूंकि सच में अगर रूह हुआ करती तो आदमी भला बेईमान भला क्यूँकर हुआ करता...!!अगर सच में आदमी के भीतर रूह हुई होती तो उसका अक्श भी तो उसके भीतर दिखाई दिया...
शनिवार, 1 अक्टूबर 2011

क्या हम सेक्स जनित विसंगतियों पर काबू पा सकते हैं? http://www.amankapaigham.com/2011/07/blog-post_28.html

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! क्या हम सेक्स जनित विसंगतियों पर काबू पा सकते हैं? http://www.amankapaigham.com/2011/07/blog-post_28.html            इस पोस्ट को पढने से ज्यादा वक्त इस पर आये वक्तव्यों को पढने में लगा,और जहां जिसके साथ जिन कारणों से विवाद हुआ लगा,वहां और तल्लीनता के साथ पढ़ा...और मुझे ऐसा भी लगा की रचना जी के वक्तव्यों का अर्थ स्थूल रूप में,या कहूँ कि गलत सन्दर्भों से जोड़कर गलत तरीके से गलत ही लिया जा रहा है,जबकि यहाँ वस्तुतः कोई है ही नहीं,बस ज़रा सोच के तरीके का...
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