भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

ख्वाजा मेरे ख्वाजा...दिल में समा जा !!

ख्वाजा मेरे ख्वाजा...दिल में समा जा !!ख्वाजा मेरे ख्वाजा ....दिल में समां जा ......श्याम की राधा....अली का दुलारा...ख्वाजा मेरे ख्वाजा !!.....एक धुन सी हर वक्त दिल में मचलती रहती है...हर किसी के प्रति प्यार में पगा ये दिल किसी-न-किसी को अपने पास ही नफरत के शोलों से भड़कता देखकर दिन-रात परेशान होता रहता है!! सबको इस जीवन में इंसानों के बीच ही रहना है,और वो भी अपने आस-पड़ोस के लोगों के बीच ही......मगर सबके-सब एक अनदेखे-अनजाने खुदा......
सोमवार, 24 जनवरी 2011

कोटि-कोटि नमन तुझे है......

                   कोटि-कोटि नमन तुझे है...... हे स्वर साधक......सूर सम्राट.......सरस्वती भक्ततुझे विश्व की विनम्र श्रद्धांजलि.........................तुझे शत-शत नमन करते हैं हम......................तुझे ह्रदय में बिठा-रखेंगे हम...........................
गुरुवार, 20 जनवरी 2011

ऐ...तू, तू है....कोई चीज़ नहीं है.....!!

ऐ...तू, तू है....कोई चीज़ नहीं है.....  तेरे भीतर भी कोई आवाज़ है....तेरे अन्दर भी कोई साज है....तू सभी चीज़ों का आगाज है....तू, तू है....कोई और नहीं....एक जीवंत राज है   तू, तू है....कोई चीज़ नहीं है....ऐ...तू कभी तेरे को पहचान ना कभी....कि तेरे भीतर भी कोई आदमी आग है....बस....पता नहीं क्यों इसपर....जन्मों-जन्मों से बिछी हुई राख है...ऐ पागल...तू,तू है....तेरे भीतर भी कोई है..कोई व्यक्तित्व...कोई निजता....कोई आत्मा....तू...
शनिवार, 15 जनवरी 2011

मेहरबान…कद्रदान…पहलवान…मेहमान……भाई-जान...!!!

ए बन्दर…बोलो सरकार…सबसे बडे चोर को कहते हैं क्या…महाचोर सरकार…!और चोरों के प्रमुख को…?चोरों का सरदार…!अगर तू कोई चीज़ चुरा लायेतो दुनिया चोर तुझे कहेगी या मुझे…हमदोनों को सरकार…! लेकिन चोरी तो तूने ना की होगी बे…लेकिन मेरे सरदार तो आप ही हो ना सरकार…!ये नियम तो सभी जगह चलता होगा ना बन्दर…हां हुजूर और जो इसे नहीं मानते हैं…वो सारे चले जाते है अन्दर…!अरे वाह,तू तो हो गया है बडा ज्ञानी बे…सब आपकी संगत का असर है सरकार…!तो क्या संगत...
गुरुवार, 13 जनवरी 2011

अल्पना जी के ब्लॉग से लौट कर.....!!

हा...हा....हा....हा....हा....दसवीं कक्षा के जमाने में पढ़ा था गुनाहों के देवता को.....एक सांस में उसे पढने के लिए समय ना मिलने के कारण बीमारी का बहाना कर छत पर जा-जाकर पढ़ा करता उसे....कई-कई बार पढ़ा.....और कई-कई बार रोया......और एक बार तो मैं फफक-फफक कर रोया था.....ऐसा था इस उपन्यास का रस...आज सोचता हूँ तो......हा....हा....हा....हा.....हर चीज़ का एक वक्त होता....कहते हैं की मुहब्बत का कोई वक्त नहीं होता.....मगर होता है जनाब होता है मुहब्बत का भी वक्त....जब वो आपके भीतर उफान मार रही होती है.....मगर आपके पास कोई नहीं...
शनिवार, 8 जनवरी 2011

...जिंदगी तो वही देगी....जो...........!!

हम क्या बचा सकते हैं...और क्या मिटा सकते हैं......ये निर्भर सिर्फ़ एक ही बात पर करता है....कि हम आख़िर चाहते क्या हैं....हम सब के सब चाहते हैं....पढ़-लिख कर अपने लिए एक अदद नौकरी या कोई भी काम....जो हमारी जिंदगी की ज़रूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त धन मुहैया करवा सके....जिससे हम अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें...तथा शादी करके एक-दो बच्चे पैदा करके चैन से जीवन-यापन कर सकें...मगर यहाँ भी मैंने कुछ झूठ ही कह दिया है....क्यूंकि...
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