भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

तो फिर कह दो कि ईश्वर नहीं है....नहीं है.....नहीं है....!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!    बहुत दिनों से दुनिया के तरह-तरह के धर्मग्रंथों-दर्शनशास्त्रों,धर्मों की उत्पत्ति-उनका विकास और भांति-भांति के लोगों द्वारा उनकी भांति-भांति प्रकार की की गयी व्याख्यायों को पढने-समझने-अनुभव करने की चेष्टा किये जा रहा हूँ,आत्मा-ईश्वर-ब्रह्माण्ड,इनका होना-ना होना,अनुमान-तथ्य-रहस्य-तर्क, तरह-तरह के वाद-संवाद और अन्य तरह-तरह विश्लेषण-आक्षेप तथा व्यक्ति-विशेष या समूह द्वारा अपने मत या धर्म को फैलाने हेतु और तत्कालीन शासकों-प्रशासकों द्वारा उसे दबाने-कुचलने हेतु किये...
रविवार, 11 दिसंबर 2011

माननीय सम्पादक महोदय,

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! माननीय सम्पादक महोदय,        आज सवेरे प्रभात खबर का सम्पादकीय पढ़ा,और तब से कुछ प्रश्नों से जूझ रहा हूँ,आपने लिखा "......यह एक तथ्य है कि भीड़ की ताकत संख्या होती है,विवेक नहीं. संसद के विवेक में देश के हर हिस्से से आये हुए जन-प्रतिनिधियों का (सामूहिक)विवेक शामिल होता है.जंतर-मंतर या किसी दूसरी जगह पर जुटी भीड़ का इस्तेमाल सांसदों के सामूहिक विवेक पर दबाव बनाने के लिए तो किया जा सकता है,फैसला लेने या फैसला सुनाने के लिए नहीं  "          माननीय...
गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

लोकतंत्र...!! हा...हा...हा...हा....क्यूँ मजाक करते हैं साहब !!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! लोकतंत्र...!! हा...हा...हा...हा....क्यूँ मजाक करते हैं साहब !!           जब से सामाजिक मुद्दों पर सोचना-लिखना शुरू किया,या यूँ कहिये कि जबसे समाज के बारे समझने की उम्र हुई,तब से एक मुद्दा सदैव ज्वलंत मुद्दा बना रहा है मन में,वो यह है,भारत के लोग,उसकी समस्याएं,भारत का लोकतंत्र,लोकतंत्र के कारण पैदा हुई समस्याएँ और लोगों की मनोवृति के कारण लोकतंत्र में पैदा हो रही समस्याएं !!          भारत के अ-शिक्षित,अर्द्धसाक्षर लोकतंत्र...
शनिवार, 26 नवंबर 2011

बस एक थप्पड़ !!??

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! बस एक थप्पड़ !!??            आज के भारत का सबसे ताजा और मौजूं प्रश्न,आज के भारत के सबसे ज्यादा सुने और सराहे जाने वाले एक गैर-राजनैतिक व्यक्ति के मूंह से निकला हुआ और अब तक सर्वाधिक भर्त्सना का शिकार हुआ एक बयान,जिसे लोकतंत्र के खिलाफ और हिंसा के पक्ष में दिया गया एक गैर-जिम्मेदाराना बयान बताया जा रहा है,मगर सिर्फ राजनैतिक नेताओं और उनसे जुड़े लोगों द्वारा....आम लोगों में इस बयान के प्रति कोई भर्त्सना-भाव नहीं दिखाई पड़ता !! ऐसा लगता है कि आम लोगों...
शनिवार, 19 नवंबर 2011

इस वतन का भला सोचनेवाले ही असल में देश-द्रोही हैं !!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!             रोज की तरह रोज अखबार पढता हूँ....और इनके माध्यम से अपने आस-पास की अच्छाईयों और बुराईयों से अवगत होता हूँ...कहना ना होगा कि अच्छाईयों से ज्यादा बुराईयों के समाचार ही छाए हुए होते हैं तमाम तरह की ख़बरों में.....ऐसा लगता है कि आदमी ने अपने खुश रहने का माध्यम ही हर तरह की बुराई को बना रखा है...और मज़ा यह कि इसी समाज से इन्हीं बुराईयों के खिलाफ प्रलाप का सूर...
बुधवार, 26 अक्टूबर 2011

अन्धेरा हमारे आस-पास घिरता जा रहा है....!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!              आज,जैसा कि सब जानते हैं,दीवाली का पर्व है,और भारत देश में चारों और हैप्पी-दीवाली,हैप्पी-दीवाली के स्वर बोले जा रहें हैं...और इस पर्व को मनाने की तैयारियां भी चारों तरफ की जा रहीं हैं !सभी तरफ बाज़ारों में बेशुमार भीड़ है गोया कि हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी....और इस भीड़ के कारण हर तरफ जाम-ही-जाम भी है ! लोग खरीदारी-पर-खरीदारी किये जा रहें हैं !अभी...
मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011

रूहें खानाबदोश क्यूँ हुआ करती हैं.....??

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!             पता नहीं क्यूँ रूहें खानाबदोश क्यूँ हुआ करती हैं.....और ख्वाब क्यूँ आवारा....!!क्या हमारे भीतर किसी रूह का होना कहीं कोई ख्वाब ही तो नहीं....या कि हम कहीं ख़्वाबों को ही तो रूह नहीं समझ बैठे हैं....क्यूंकि सच में अगर रूह हुआ करती तो आदमी भला बेईमान भला क्यूँकर हुआ करता...!!अगर सच में आदमी के भीतर रूह हुई होती तो उसका अक्श भी तो उसके भीतर दिखाई दिया...
शनिवार, 1 अक्टूबर 2011

क्या हम सेक्स जनित विसंगतियों पर काबू पा सकते हैं? http://www.amankapaigham.com/2011/07/blog-post_28.html

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! क्या हम सेक्स जनित विसंगतियों पर काबू पा सकते हैं? http://www.amankapaigham.com/2011/07/blog-post_28.html            इस पोस्ट को पढने से ज्यादा वक्त इस पर आये वक्तव्यों को पढने में लगा,और जहां जिसके साथ जिन कारणों से विवाद हुआ लगा,वहां और तल्लीनता के साथ पढ़ा...और मुझे ऐसा भी लगा की रचना जी के वक्तव्यों का अर्थ स्थूल रूप में,या कहूँ कि गलत सन्दर्भों से जोड़कर गलत तरीके से गलत ही लिया जा रहा है,जबकि यहाँ वस्तुतः कोई है ही नहीं,बस ज़रा सोच के तरीके का...
शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

प्रबंधन के कुछ गैर-पारिभाषिक एवं गैर प्रचलित सूत्र !!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! प्रबंधन के कुछ गैर-पारिभाषिक एवं गैर प्रचलित सूत्र !! प्रिय भाई ,               तुम्हें मेरा अत्यधिक प्रेम,                 आज तुमसे कुछ बातें शेयर करने को दिल चाह रहा है,किन्तु आमने-सामने देर तक कुछ कहा जाना और सामने वाले का उसका सूना जाना अब बड़ा दुरूह हो चुका है,इसलिए यह पत्र तुम्हें लिख रहा हूँ कि तुम बड़े इत्मीनान से समय लेकर पढ़ सको,और जब अवसर मिले इसे पढ़कर प्रबंधन के कुछ गुर सीखो और मज़ा यह...
शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

धरती पर बढ़ेंगे अभी और बलात्कार !!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! धरती पर बढ़ेंगे अभी और बलात्कार !!                शीर्षक पढ़कर चौंकिए नहीं क्योंकि तरह-तरह के अध्ययनों के अनुसार जो तथ्य सामने आ रहे हैं उनसे दो बातें स्पष्टया साबित होती हैं,एक,धरती पर पुरुष-स्त्री का लिंगानुपात असामान्य रूप से असंतुलित होता जा रहा है,दूसरा,संचार के तमाम द्रुतगामी साधनों की बेतरह उपलब्धता के कारण आदमी जल्द ही व्यस्क होता जा रहा है,आदमी जहां पूर्व में इक्कीस-बाईस में,फिर सत्रह-अट्ठारह में,फिर पंद्रह-सोलह में और अब तेरह-चौदह...
शनिवार, 24 सितंबर 2011

हैप्पी बर्थ डे आल ऑफ़ टू यू..............

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! हैप्पी बर्थ डे आल ऑफ़ टू यू दिन बदलते हैं.... कुछ बदलता सा दिखाई देता है.... मगर कुछ बदलता सा नहीं होता... बस थोड़ा सा हम बदल जाते हैं.... एक दिन और बढ़ जाते हैं.... एक कदम और मृत्यु की और ले जाते हैं  दिन बदलते जाते हैं... और हर एक दिन के साथ  बढ़ा लेते हैं हम  अपनी कुछ और जिम्मेवारियां.... सर पर बोझ बढाते जाते हैं  और खुद ही हर दिन  अपने-आप पर बोझ बनते जाते हैं  बदलता है ना बहुत कुछ... हमारा हंसता हुआ चेहरा उदासी में परिणत हो जाता है  इस...
बुधवार, 21 सितंबर 2011

ये नए मिजाज का शहर है,ज़रा फासले से मिला करो !!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!                     आईआईएम बेंगलुरु की छात्रा मालिनी मुर्मू के आत्महत्या जैसे कदम उठाये जाने से एक बार फिर सोशल-साईट्स में बनाने वाले रिश्तों की गंभीरता पर प्रश्नचिन्ह उठता है,कि बिना-देखे भाले बनाए गए रिश्ते और दोस्ती टिकाउपन के लिहाज से कहीं क्षण-भंगुर तो नहीं...?महज अपनी फ्रेंड-लिस्ट के बड़ा होते जाने को लेकर रोमांटिक होना इस...
शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

अभी-अभी जो मैंने पढ़ा....अच्छा लगा....!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! SUNDAY, SEPTEMBER 11, 2011 जब औरत घर की जिम्मेदारियां ना संभालना चाहे तो क्या करें? इंसान को जीने के लिए इस दुनिया मैं बहुत कुछ करना पड़ता है. बचपन से बच्चों को पढाया लिखाया जाता केवल इसलिए है कि समाज मैं इज्ज़त से सर उठा के जी सकें. अपनी अपनी सलाहियत के अनुसार हर इंसान अपने रोज़गार का रास्ता चुन लेता है. कोई व्यापार करने लगता है, कोई विज्ञान मैं महारत हासिल करता है तो कोई...
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