भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

ओ स्त्री...बच के तुम जाओगी कहाँ....भला...!!??

ओ स्त्री...बच के तुम जाओगी कहाँ....भला...!!??ऐ स्त्री !!बहुत छटपटा रही हो ना तुम बरसों से पुरुष के चंगुल में…क्या सोचती हो तुम…कि तुम्हें छुटकारा मिल जायेगा…??मैं बताऊं…?? नहीं…कभी नहीं…कभी भी नहीं…क्योंकि इस धरती पर किसी को भी पुरुष नाम के जीव सेमरे बगैर या विलुप्त हुए बगैर छुटकारा नहीं मिलता…पुरुष की इस सत्ता ने ना जाने कितने प्राणियों को लुप्त कर डालापुरुष नाम के जीव की सत्ता की हवस के आगे कोई नहीं टिक पायायह तो सभ्यता की शुरुआत...
गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

हैलो राडिया(नीरा)…!!…नमस्कार…!!कैसी हो ??

हैलो राडिया(नीरा)…!!…नमस्कार…!!कैसी हो ??क्या गज़ब है ना नीरा कि मीडिया के द्वारा अक्सर ऐसे-ऐसे नाम प्रकाश में आ जाया करते हैं,जिन्हें आम जगत में कल तक कोई जानता तक नहीं होता…॥किन्तु बदनाम भी होंगे तो क्या नाम ना होगा कि तर्ज़ पर अक्सर बद्ननामी के रूप में ही ऐसे लोग अक्सर अचानक  राजनैतिक,सामाजिक या अन्य किसी क्षितिज पर प्रकाशमान दिखाई देते हैं और कुछ ही समय पश्चात किसी अज्ञात ब्लैक-होल में जाकर समा जाते हैं…और उस वक्त तक...
बुधवार, 8 दिसंबर 2010

तो फिर मत आईये ना राष्ट्रपति जी यहाँ......!!!

तो फिर मत आईये ना राष्ट्रपति जी यहाँ......!!!              क्या आपको यह पता भी है ओ राष्ट्रपति जी कि आप जहां आने वाले हो ,वहां आपके आने की ख़ुशी में हज़ारों पेड़ सड़क से काट डाले गए हैं ?क्या पेड़ में आपके दुश्मन छुपे हुए होंगे ,जो आपका इंतज़ार कर रहे होंओं,कि कब आप आओ और वो आपका काम तमाम कर डालें ?              क्या आपको यह पता भी है ओ राष्ट्रपति...
बुधवार, 8 दिसंबर 2010

रोइए जार-जार क्या....कीजिये हाय-हाय क्यूँ !!!

                      रोइए जार-जार क्या....कीजिये हाय-हाय क्यूँ !! बड़ा शोर सुन रहा हूँ इन दिनों स्पेक्ट्रम वगैरह-वगैरह का.....मन ही नहीं करता कि कुछ लिखूं....हमारा लिखना कुछ यूँ है कि हमारे जैसे ना जाने लिखते-चीखते-चिल्लाते रह जाते हैं....और घोटाले करने वाले घोटाले कर-कर के नहीं अघाते हैं....बड़े-बड़े अफसर फाईलों पर अपनी चेतावनी की कलम चलाते हैं....मगर किसी साले का...
रविवार, 5 दिसंबर 2010

आखिर किसको बदलना चाहते हैं आप ??

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!                                          आखिर किसको बदलना चाहते हैं आप ??                    अभी-अभी एक मित्र के घर से चला आ रहा हूँ,अवसर था उसके दादाजी की मृत्यु पर घर पर बैठकी का...और इस संवेदनशील अवसर पर उस मित्र से जो कहा गया,उस पर सोच-सोच कर अचंभित-व्यथित और क्रोधित हुआ जा रहा हूँ,मेरे उस मित्र ने प्रेम...
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