विकिलिक्स द्वारा अमेरिकी कारर्वाईयों के भंडाफ़ोड किये जाने और अमेरिकी सरकार द्वारा इसे संघीय व्यवस्था का उल्लंघन बताये जाने पर एक प्रश्न अपने-आप ही उठ खडा होता है कि क्या सिर्फ़ सरकारें ही व्यवस्था को बनाये रखती हैं,बाकि सब तंत्र उसका उल्लघंन ही करते हैं??
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गुरुवार, 29 जुलाई 2010
to phir kyaa aam aadmi hi desh drohi hai.....??
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
उफ़ ये मेरा दिल क्यूँ रो रहा हैक्या कहीं कोई गुम हो गया है ??ये क्या कह डाला है हाय तुमने हर लम्हा ही तंग हो गया है !!खुद का दर्द भी नहीं समझता दिल कितना सुन्न हो गया है !! अब इस राख को मत संभालो अब सब कुछ ख़त्म हो गया है !!ये सच्चाई की बू कैसी है यहाँ क्या कोई फिर बहक गया है ??कब्र में रू से पूछता है "गाफिलक्या तेरा जिस्म ख़त्म हो गया है...
गुरुवार, 22 जुलाई 2010
हिंदी के प्रति आप क्या बनेंगे,नमक-हलाल,या हरामखोर.....???
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
हिंदी के प्रति आप क्या बनेंगे,नमक-हलाल,या हरामखोर.....?
दोस्तों , बहुत ही गुस्से के साथ इस विषय पर मैं अपनी भावनाएं आप सबके साथ बांटना चाहता हूँ ,वो यह कि हिंदी के साथ आज जो किया जा रहा है ,जाने और अनजाने हम सब ,जो इसके सिपहसलार बने हुए हैं,इसके साथ जो किये जा रहे हैं....वह अत्यंत दुखद है...मैं सीधे-सीधे आज आप सबसे यह पूछता हूँ कि मैं आपकी माँ...आपके बाप....आपके भाई-बहन या किसी भी दोस्त- रिश्तेदार या ऐसा कोई भी जिसे आप पहचानते हैं....उसका चेहरा अगर बदल दूं तो क्या...
सोमवार, 19 जुलाई 2010
हाँ..........स्थिति वाकई भयावह है....!!
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
हाँ........स्थिति वाकई भयावह है....!!!
आज ही रात को बंगाल के एक रेलवे प्लेटफोर्म पर एक भयावह हादसा घटित हुआ है...जिसने भी इस हादसे के बारे में सुना-पढ़ा या देखा है....वो मर्माहत है....सन्न है...किंकर्तव्यविमूढ़ है....समझ नहीं पा रहा कि इस हादसे से अकाल काल-कलवित हो गए लोगों के परिजनों के लिए आखिर क्या करे....उन्हें किस तरह ढाढस बंधाये....और घायल पड़े लोगों...
सोमवार, 12 जुलाई 2010
क्या हम सब एक जंगल में रहते हैं.....??

क्या हम सब एक जंगल में रहते हैं.....??
..........जंगल.....!!यह शब्द जब हमारी जीभ से उच्चारित होता है....तब हमारे जेहन में एक अव्यवस्था...एक कुतंत्र...एक किस्म की अराजकता का भाव पैदा हो जाया करता है....इसीलिए मानव-समाज में जब भी कोई इस प्रकार की स्थिति पैदा होती है तो हम अक्सर इसे तड से जंगल-तंत्र की उपमा दे डालते हैं.....मगर अगर एक बार भी हम जंगल की व्यवस्था को ठीक प्रकार से देख लें तो हम पायेंगे कि हमारी यह उपमा...
गुरुवार, 8 जुलाई 2010
उम्र भर लिखते रहे..................
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
उम्र भर लिखते रहे,हर्फ़-हर्फ़ बिखरते रहे
बस तुझे देखा किये,आँख-आँख तकते रहे....!!
उम्र भर लिखते रहे.....
कब किसे ने हमें कोई भी दिलासा दिया
खुद अपने-आप से हम यूँ ही लिपटते रहे....!!
उम्र भर लिखते रहे.......
आस हमारे आस-पास आते-आते रह गयी..
हम चरागों की तरह जलते-बुझते रह गए.....!!
उम्र भर लिखते रहे.....
हम रहे क्यूँ भला इतने ज्यादा पाक-साफ़
लोग हमें पागल और क्या-क्या समझते रहे...!!
उम्र भर लिखते रहे....
आज खुद से पूछते हैं,जिन्दगी-भर क्या किये
पागलों की तरह ताउम्र उल्टा-सीधा बकते रहे....!!
उम्र...
मंगलवार, 6 जुलाई 2010
कौन समझेगा इस नामाकूल-से भूत की बात......??!
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!गरज-बरस प्यासी धरती को फिर पानी दे मौलाचिडियों को दाने , बच्चों को , गुडधानी दे मौला !!कई दिनों से आँखें पानी को तरस रही थीं
और अब जब पानी बरसा तो कई
दूसरी आँखें पानी से तर हो गयीं हैं,
पानी उनकी झोपड़-पट्टियों को लील लिए जा रहा है....पानी
जो सूखे खेतों को फसलों की रौनक लौटने को बेताब है
वहीं शहरों में गरीबों को लील जाने को व्यग्र...!!
पानी को कतई नहीं पता है कि उसे कहाँ बरसना है और कहाँ नहीं बरसना !!
शायर ने कहा भी तो है,...
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