मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
......किससे जाकर क्या कहूँ ,इससे तो अच्छा है चुप ही रहूँ कौन समझेगा मेरे दिल की बातकितनी रातें सोयी नहीं मेरी आंखकौन बो रहा है मुझमें क्या-क्या कुछ कौन कहता है मुझसे क्या-क्या कुछजो गुनता हुं मैं,कह नहीं सकताऔर कहे बिना भी रह नहीं सकताकौन सुनेगा मेरे दिल की बातक्या समझेगा वो मेरे दिल की बात .........किससे जाकर क्या कहूँ ,इससे तो अच्छा है चुप ही रहूँ जहर की माफ़िक जो भी मिलता हैप्रसाद की तरह उसे पी जाता हूँ मुझमें सब कुछ गुम हो जाता हैऔर मैं...
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गुरुवार, 24 जून 2010
......किससे जाकर क्या कहूँ.......!!
शनिवार, 19 जून 2010
कम्युनिस्ट : एक जटिल से शब्द का सरल सा विश्लेषण.........
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! कम्युनिस्ट,ये एक ऐसा शब्द है जो पिछ्ले सौ सालों से पूरे विश्व के राजनीतिक-सामाजिक और आर्थिक फलक पर छाया हुआ है,इसके लाभ-हानि का विश्लेषण करने से पुर्व यदि हम इसके इतिहास पर नज़र डालते हैं तो हम पाते हैं कि जैसा कि हम किताबों के द्वारा जिस क्म्युनिज्म को जानते-समझते हैं वास्तविक स्थितियों को देख्नने पर इससे इत्तर ही बात दिखायी देती है और सबसे बडी बात तो यह कि इस आंदोलन ने एक खास समय में बेशक पूरे विश्व...
सोमवार, 14 जून 2010
मन करता है मैं मर जाउं...
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
मन करता है मैं मर जाउं...
इन सब झमेलों से तर जाउं
मन करने से क्या होगा
होगा वही जो भी होगा
मन तो बडा सोचा करता है
रत्ती-भर को ताड सा कर देता है
आदमी तो हरदम वैसा-का-वैसा है
इक-दूसरे को काटता रहता है
हर आदमी का अहंकार है गहरा
और उसमें बुद्धि का है पहरा
बुद्धि हरदम हिसाब करती रहती है
फिर भी पाप और पुण्य नहीं समझती है
ईश्वर-अल्ला-गाड बनाये हैं इसने
फ़िर भी कुछ समझा नहीं है इसने
तरह-तरह की बातें करता रहता है
खुद को खुद ही काटा करता है(तर्क से)
पहले नियम बनाता है आदम
फिर उनको खुद ही काटता...
शनिवार, 12 जून 2010
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!मेरे प्यारे दोस्तों,आप सबको भूतनाथ का असीम और निर्बाध प्रेम, मेरे दोस्तों.......हर वक्त दिल में ढेर सारी चिंताए,विचार,भावनाएं या फिर और भी जाने क्या-क्या कुछ हुआ करता है....इन सबको व्यक्त ना करूँ तो मर जाऊँगा...इसलिए व्यक्त करता रहता हूँ,यह कभी नहीं सोचता कि इसका स्वरुप क्या हो....आलेख-कविता-कहानी-स्मृति या फिर कुछ और.....उस वक्त होता यह कि अपनी पीडा या छटपटाहट को व्यक्त कर दूं....और कार्य-रूप में जो कुछ बन पड़ता है,वो कर डालता हूँ....कभी भी अपनी रचना के विषय में मात्रा,श्रृंगारिकता...
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