भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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सोमवार, 29 मार्च 2010

हे दुनिया की महान आत्माओं...संभल जाओ....!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! मेरी गुजरी हुई दुनिया के बीते हुए दोस्तों.....मैं तो तुम्हारी दुनिया में अपने दिन जीकर आ चूका हूँ....और अब अपने भूतलोक में बड़े मज़े में अपने नए भूत दोस्तों के साथ अपनी भूतिया जिन्दगी बिता रहा हूँ....मगर धरती पर बिताये हुए दिन अब भी बहुत याद आते हैं कसम से.....!!अपने मानवीय रूप में जीए गए दिनों में मैंने आप सबकी तरह ही बहुत उधम मचाया था....और वही सब करता था जो आप सब आज कर रहे हो....और इसी का सिला यह है कि धरती अपनी समूची अस्मिता खोती जा रही.... अपने...
शुक्रवार, 26 मार्च 2010

एक था बचपन

एक था बचपन !!बड़ा ही शरारती,बड़ा ही नटखट !!वो इतना भोला था कि हर इक बात पर हो जाता था हैरानबन्दर के चिचियाने से,तितली के उड़ने सेमेंढक के उछलने से,चिड़िया के फुदकने से !! वो बड़ो को बार-बार करता था डिस्टर्ब.....काम तो कुछ करता ही नहीं था,और साथ ही खेलता ही रहता था हर वक्त !!कभी ये तोड़ा,कभी वो तोड़ा और कभी-कभी तो हाथ-पैर भी तुडवा बैठता था खेल-खेल में बचपन तो कभी कुछ जला-वुला भी लेता था अनजाने में बचपन बचपन कभी किसी की कुछ सुनता भी तो नहीं था ना....!!बस अपनी चलता था और तब.....मम्मी की डांट खाता तो सहम-सहम जाता था बचपनपापा...
शनिवार, 20 मार्च 2010

प्रलय अब होने को ही है.......!!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! चारों तरफ धूप फैलती जा रही है......गर्मी का साम्राज्य सब दिशाओं को अपनी आगोश में लेता जा रहा है ...और अमीर लोगों के घरों में कूलरों,ए.सी.और सबको ठंडक पहुँचाने के अन्य साधन सर्र-सरर र....की आवाजें करते धड़ल्ले से चलने लगें हैं...जहां तक इनकी हवा जाती है वहां तक तो सब ठीक-ठाक सा लगता है मगर उसके बाद गरमी की भयावहता वैसी की वैसी...यानी कि विकराल और खौफनाक....!! आदमी को मौसमों से हमेशा से ही डर लगता रहा है....मगर उसके बावजूदउसने जो कुछ भी धरती पर आकर किया है उससे मौसमों का...
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