भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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रविवार, 20 सितंबर 2009

चोखेर बाली से लौट कर...दुनिया के पुरुषों,संभल जाओ...!!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! यह जो विषय है....यह दरअसल स्त्री-पुरुष विषयक है ही नहीं....इसे सिर्फ इंसानी दृष्टि से देखा जाना चाहिए....इस धरती पर परुष और स्त्री दो अलग-अलग प्राणी नहीं हैं...बल्कि सिर्फ-व्-सिर्फ इंसान हैं प्रकृति की एक अद्भुत नेमत.. !!...इन्हें अलग-अलग करके देखने से एक दुसरे पर दोषारोपण की भावना जगती है....जबकि एक समझदार मनुष्य इस बात से वाकिफ है की इस दुनिया में सम्पूर्ण बोल कर कुछ भी नहीं है.....अगर...
मंगलवार, 15 सितंबर 2009

एक बार की बात है...... उल्लू राज की बात है......!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! एक बार क्या हुआ कि जम्बुद्वीप के भारत नाम के इक देश में उल्लू नामक एक जीव का राज्य कायम हो गया.....फिर क्या था,पिछले सारे कानून बदल दिए गए...नए-नए फरमान जारी किए जाने लगे, बाकी चीज़ों की बात तो ठीक थी मगर जब "उलूकराज" ने जब राज्य की जनता को यह फरमान जारी किया कि अब से दिन को रात और रात को दिन कहा जाए....तब लोगों को यह बड़ा नागवार गुजरा.मगर चूँकि इस देश के लोगों को राजाज्ञा...
गुरुवार, 10 सितंबर 2009

मेरे तो चारों तरफ आग ही आग है!!

यहाँ से वहां तक कैसा इक सैलाब हैमेरे तो चारों तरफ आग ही आग है!!कितनी अकुलाहट भरी है जिन्दगीहर तरफ चीख-पुकार भागमभाग है!!अब तो मैं अपने ही लहू को पीऊंगाइक दरिंदगी भरी अब मेरी प्यास है!!मेरे भीतर तो तुम्हे कुछ नहीं मिलेगामुझपर ऐ दोस्त अंधेरों का लिबास है!!हर तरफ पानियों के मेले दिखलाती हैउफ़ ये जिंदगी है या कि इक अजाब है!!हर लम्हा ऐसा गर्मियत से भरा हुआ हैऐसा लगता है कि हयात इक आग है !!हम मर न जाएँ तो फिर करें भी क्याकातिल को हमारी...
रविवार, 6 सितंबर 2009

हम भूत बोल रहा हूँ...चीनी कम.....चीनी कम......!!

देखिये गरीब भईया जीहमन तो एक्क ही बतवा कहेंगे......एही की.....बहुते चीज़ दूर होन्ने से मीठा हो जाता है......आदमिवा से कोइयो चीज़ को दूर कर दीजिये ना....ऊ चीज्वा ससुरवा तुरंते मीठा हुई जावेगा....सरकारे भी एही भाँती सोचती है....झूठो का झंझट काहे करें...ससुरी चीनी को मायके भेज दो देखो आदमी केतनों पईसा खर्च करके ससुरा उसको,जे है से की लेयिये आवेगा.....!! आउर देखिये बाबू ई धरती पर गरीबन को जीने-वीने का कोइयो हक़-वक नहीं है....उसको जरुरत अगर अमीरन को खेती करने,जूता बनाने,पखाना साफ़ करने,दाई-नौकर का तमाम...
गुरुवार, 3 सितंबर 2009

अरे भाई...जिंदगी तो वही देगी....जो...........!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! अरे भाई...जिंदगी तो वही देगी....जो...........!! हम क्या बचा सकते हैं...और क्या मिटा सकते हैं......ये निर्भर सिर्फ़ एक ही बात पर करता है....कि हम आख़िर चाहते क्या हैं....हम सब के सब चाहते हैं....पढ़-लिख कर अपने लिए एक अदद नौकरी या कोई भी काम....जो हमारी जिंदगी की ज़रूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त धन मुहैया करवा सके....जिससे हम अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें...तथा शादी करके एक-दो बच्चे पैदा करके...
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