मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!दोस्तों....आप सबको मेरा असीम....अगाध प्रेम.....!! मेरे प्यारे दोस्तों,आप सबको भूतनाथ का असीम और निर्बाध प्रेम, मेरे दोस्तों.......हर वक्त दिल में ढेर सारी चिंताए,विचार,भावनाएं या फिर और भी जाने क्या-क्या कुछ हुआ करता है....इन सबको व्यक्त ना करूँ तो मर जाऊँगा...इसलिए व्यक्त करता रहता हूँ,यह कभी नहीं सोचता कि इसका स्वरुप क्या हो....आलेख-कविता-कहानी-स्मृति या फिर कुछ और.....उस वक्त होता यह कि अपनी पीडा या छटपटाहट को व्यक्त कर दूं....और कार्य-रूप में जो कुछ बन पड़ता है,वो कर डालता हूँ....कभी...
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शनिवार, 30 मई 2009
दोस्तों....आप सबको मेरा असीम....अगाध प्रेम.....!!
गुरुवार, 28 मई 2009
हाय समाज........तू भी देता है ना जाने कैसे-कैसे दंश.....!!
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! हाय समाज........तू भी देता है ना जाने कैसे-कैसे दंश.....!! ............न पुरूष और न ही स्त्री..............दरअसल ये तो समाज ही नहीं.........पशुओं के संसार में मजबूत के द्वारा कमजोर को खाए जाने की बात तो समझ आती है......मगर आदमी के विवेकशील होने की बात अगर सच है तो तो आदमी के संसार में ये बात हरगिज ना होती.......और अगरचे होती है.....तो इसे समाज की उपमा से विभूषित करना बिल्कुल नाजायज है....!! पहले तो ये जान लिया जाए कि समाज की परिकल्पना क्या है.....इसे आख़िर क्यूँ...
मंगलवार, 26 मई 2009
आई लव यु दद्दू,सेम तू यु बुद्दू......!!
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!अरे सुनो ना दद्दू.....!!अबे....बोल बे बुद्धू....!! एक सरकार बनाओ ना.....!! बात क्या है,बताओ ना....!!हमको समर्थन देना है...!!मगर हमको नहीं लेना है....!!ले लो ना समर्थन हमसे.....!!अरे नहीं लेना समर्थन तुमसे....!!लेकिन हम तो दे के रहेंगे.....!!लेकिन हम तुमको कोई पद नहीं देंगे....!!पद की किसको पड़ी है दद्दू...!!तो समर्थन किस बात का बुद्दू...??हम सांप्रदायिक सरकार नहीं चाहते....!!और हम धर्म-निरक्षेप सांप्रदायिक कहलाते हैं....!!तो क्या हुआ धर्म-निरक्षेप तो हैं ना...!!लेकिन हम तो इसका अर्थ भी...
सोमवार, 25 मई 2009
रास्ता होता है....बस नज़र नहीं आता..........!!
मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! रास्ता होता है....बस नज़र नहीं आता..........!!कभी-कभी ऐसा भी होता है हमारे सामने रास्ता ही नहीं होता.....!! और किसी उधेड़ बून में पड़ जाते हम.... खीजते हैं,परेशान होते हैं... चारों तरफ़ अपनी अक्ल दौडाते हैंमगर रास्ता है कि नहीं ही मिलता.... अपने अनुभव के घोडे को हम.... चारों दिशाओं में दौडाते हैं...... कितनी ही तेज़ रफ़्तार से ये घोडे हम तक लौट-लौट आते हैं वापस बिना कोई मंजिल पाये हुए.....!! रास्ता है कि नहीं मिलता......!! ...
गुरुवार, 21 मई 2009
हम तो बस करतब दिखा रहे हैं......!!
हम तो बस करतब दिखा रहे हैं......!! चार बांसों के ऊपर झूलती रस्सी..... रस्सी पर चलता नट.... अभी गिरा,अभी गिरा,अभी गिरा मगर नट तो नट है ना चलता जाता है.... बिना गिरे ही इस छोर से उस छोर पहुँच ही जाता है.....!! इस क्षण आशा और अगले ही पल इक सपना ध्वस्त....!! अभी-अभी..... इक क्षण भर की कोई उमंग और अगले ही पल से कोई अपार दुःख अनन्त काल तक अभी-अभी हम अच्छा-खासा बोल बतिया रहे थे और अभी...
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