इंटरनेट पर समस्याओं पर बात करना कितना अच्छा है है ना.......!! चाय की चुस्कियों के संग गरीबों पर गपियाना कितना अच्छा है ना.....!! कहीं बाढ़ आ जाए,आग लग जाए,भूकंप हो या कहीं मारे जाएँ कई लोग की-बोर्ड पर अंगुलियाँ चलाकर उनपर चिंता जताना कितना अच्छा है ना !! घर से बाहर रहूँ तो पुत्री के छेड़े जाने पर हिंदू-मुस्लिम का दंगा मचवा दूँ.... और किसी ब्लॉग पर एकता की बातें बतियाना कितना अच्छा है ना....!! हर कोई अपनी-अपनी तरह से सिर्फ़ अपने ही स्वार्थों के लिए जी रहा है और किसी और को उसकी इसी बात के लिए लतियाना कितना अच्छा है ना...
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गुरुवार, 30 अप्रैल 2009
दोस्तों......यह सब कितना अच्छा है ना.....!!
मंगलवार, 28 अप्रैल 2009
फेस बुक पर चंडीदत्त शुक्ल की पंक्तियों पर.....!!
...तुम्हें...क्या कहूं...क्या लिखूं...चुप रहूं...या बोलता जाऊं...तुम्हीं कहो...(ये पंक्तियाँ चंडीदत्त शुक्ल की हैं.....अब उससे आगे मेरी पक्तियां....!!)या फिर समेट लो खुद में...और अगर कोई आरजू बाकी भी रहेतो सिर्फ तेरी....सिर्फ तेरी.....हाँ तरह समेट ले तू खुद को मुझमें....सब तेरा ही हो जाए ....मैं मैं ना रहूँ.....मैं तू हो जाए....मुझमें मेरा कुछ भी ना रहे....आरजू मैंने भी खूब पाली थी कभी....मगर अब जो तू आ गया है तो सब ख़त्म...अब मैं हूँ ही नहीं......सिर्फ तू है....सिर्फ तू.....अरे मैं यह सब क्या कह गया.....मैं तो हूँ...
मंगलवार, 28 अप्रैल 2009
थोड़ा-थोड़ा-सा ही सब कुछ......!!
थोड़ा-थोड़ा ही सा सब कुछ सब कोई कर रहे हैं......और परिणाम.....??बहुत कुछ.......!!सभी थोड़ा-थोड़ा-सा धुंआ उड़ा रहे हैं......और सबका मिला जुलाकर.........हो जाता है ढेर सारा धुंआ......!!थोडी-थोडी-सी चोरी कर रहें हैं सभी.....और क्या ऐसा नहीं लगता कि-सारे के सारे चोर ही हों.....!!थोडी-थोडी-सी गुंडा-गर्दी होती है....और परिणाम.....??बाप-रे-बाप सारी दुनिया तबाह हो जैसे.....!!थोडी-थोडी-सी छेड़खानी होती है सब जगह....और सारी धरती पर की......सारी स्त्रियों और लड़कियों की- निगाहें चलते वक्त गड़ी होती हैं.....जमीं के कहीं बहुत ही...
गुरुवार, 23 अप्रैल 2009
क्या लोकतंत्र अब मर चुका है............??
दोस्तों.....आज सवेरे से ही मन बड़ा व्यथित है.......आज अपनी पत्नी के संग भारत के लोक सभा चुनाव का अपना वोट देने गया था....मगर अपने घर से दो-ढाई किलोमीटर दूर तक के रस्ते में पड़ने वाले तमाम बूथों पर एक अजीबो-गरीब सन्नाटा पसरा देखा......हम अपने बूथ पर पहुंचे तो मतदानकर्मियों के अलावा हम दो मतदाता ही वहाँ थे....उससे पूर्व और बाद के कई मिनटों तक भी यही हाल था....इससे इस सन्नाटे से ज्यादा हम दोनों ही सन्नाटे में आ गए....हम दोनों के लिए ही यह दृश्य एकदम से अचम्भाकारी था.....हम एकदम से चंद सेकंडों में...
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