अभी-अभी तृप्ति जोशी जी के ब्लॉग पर होकर आया हूँ..........वहां इक बड़ी ही सारगर्भित प्रेम-कविता दिखी और मैं इस वेदना से ख़ुद को व्यक्त करने से रोक नहीं पा रहा..........और मैं कुछ पंक्तियाँ अपनी अनुभूति के रूप में कागज़ पर उकेर दी हैं.....मेरे दिल से निकल कर ये कागज़ पर आ तो गए हैं.......और मुझे कुछ कह रहे हैं.......और मैं तसल्ली से इन्हें सुन रहा हूँ............... हाँ, सब कुछ पहले की तरह का ही याद आता है, जबकि तुम थे,और आज नहीं हो....... तुम्हारी आवाज़ गूंजती...
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शनिवार, 31 जनवरी 2009
जिसे पाल रही हूँ तुम्हारे बच्चे की तरह..........!!
शनिवार, 31 जनवरी 2009
प्रश्न कई हैं.......!!
राहुल जी कोबहुत-बहुत आभार के साथ उनकीयह कविता आज अपने ब्लॉग परलगा रहा हूँ......इस उम्मीद के साथ कि सभी साथियों को गहन और अपरिमित अर्थों वाली यह कविता पसंद आएगी....और राहुल जी आपको भीबहुत-बहुत धन्यवाद.........इन भावों काइस रूप मेंअभिव्यक्तिकरण के लिए...!! प्रश्न कई हैं राहुल उपाध्याय (http://www.youtube.com/watch?v=ALdNmdp5ibg) प्रश्न कई हैं उत्तर यहीं तू ढूंढता जिसे है वो तेरे अंदर कहीं जो दिखता है जैसा वैसा होता नहीं जो बदलता है रंग वो अम्बर नहीं मंदिर में जा-जा के रोता है क्यूँ दीवारों में रहता वो बंधकर...
गुरुवार, 29 जनवरी 2009
गाँधी.............और हम उंचा सोचने वाले.........!!
गांधी...........और हम उंचा सोचने वाले..........!! बरसों से गांधी के बारे में बहुत सारे विचार पढता चला आ रहा हूँ.....!!अनेक लोगों के विचार तो गाँधी को एक घटिया और निकृष्ट प्राणी मानते हुए उनसे घृणा तक करते हैं....!!गांधीजी ने भातर के स्वाधीनता आन्दोलन के लिए कोई तैंतीस सालों तक संघर्ष किया....उनके अफ्रीका से भारत लौटने के पूर्व भारत की राजनीतिक,सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियां क्या थीं,भारत एक देश के रूप में पिरोया हुआ था भी की नहीं,इक्का-दुक्का छुट-पुट आन्दोलन को छोड़कर (एकमात्र १८५७ का ग़दर बड़ा ग़दर...
बुधवार, 28 जनवरी 2009
रात,खो गया मेरा दिल....!!

कल रात ही मेरा दिल चोरी चला गया, और मुझे कुछ पता भी ना चला, वो तो सुबह को जब नहाने लगा, तब लगा,सीने में कुछ कमी-सी है, टटोला,तो पाया,हाय दिल ही नहीं !! धक्क से रह गया सीना दिल के बगैर, रात रजाई ओड़ कर सोया था, मगर रजाई की किसी भी सिलवट में, मेरा खोया दिल ना मिला, टेबल के ऊपर,कुर्सी के नीचे, गद्दे के भीतर,पलंग के अन्दर, किसी खाली मर्तबान में, या बाहर बियाबान में, गुलदस्ते के भीतर, या किताब की किसी तह में, और आईने में नहीं मिला...
मंगलवार, 27 जनवरी 2009
करैक्टर कहाँ से लायें...........!!.....(२)
करैक्टर कहाँ से लायें...........!!.....(२) करैक्टर कहाँ से लायें ...........!!.....2दोस्तों यह भूत आज फिर हाज़िर है.........कल के उन्ही सवालों के साथ.......!!??दोस्तों मैं आपसे ज्यादा अपने -आप से यह जानने को उत्सुक हूँ कि मैं अपने करैक्टर ...अपनी नैतिकता .....अपनी सामूहिकता को लेकर क्या हूँ .....क्यूंकि आपमें सबसे पहले मैं स्वयम शामिल हूँ ....क्या जो बात मैं आपसे पूछना चाहता हूँ .....उसमे तनिक भी सच्चाई का अंश मुझमें भी है ........??क्या मैं नैतिक हूँ ......??क्या मैं सच्चा हूँ ......??क्या मैं समूह के हितों...
रविवार, 25 जनवरी 2009
स्लम-डॉग .........इक सच....इक झूठ.......!!
स्लम डॉग बेशक एक सच है....मगर इस सो कॉल्ड डॉग को इस स्लम से निकालना उससे भी बड़ा कर्तव्य आपके ख़ुद के बच्चे का नाम रावण नामकरण,कंस,पूतना,कुता,बिल्ली आदि क्या कभी आप रखते हो....नाम में ही आप अच्छाई ढूँढ़ते हो.....और हर किसी नई चीज़ या संतान या फैक्ट्री या दूकान या कोई भी चीज़ का नामकरण करते हो....नाम में ही आप शुभ चीज़ें पा लेना चाहते हो......स्लम-डॉग........ये नाम........!!नाम तो अच्छा नहीं है ना .......एक अच्छी चीज़ बनाकर उसका टुच्चा नाम रखने का क्या अर्थ है ....क्या इसका ये भी मतलब नहीं आप भारत...
रविवार, 25 जनवरी 2009
प्यारे देशवासियों...............!!

भारत के सभी प्यारे-प्यारे निवासियों को भारत के पावन दिवस की असीम शुभकामनाएं.....
शनिवार, 24 जनवरी 2009
करैक्टर कहाँ से लायें...........!!.....(२)
करैक्टर कहाँ से लायें ...........!!.....2दोस्तों यह भूत आज फिर हाज़िर है.........कल के उन्ही सवालों के साथ.......!!??दोस्तों मैं आपसे ज्यादा अपने -आप से यह जानने को उत्सुक हूँ कि मैं अपने करैक्टर ...अपनी नैतिकता .....अपनी सामूहिकता को लेकर क्या हूँ .....क्यूंकि आपमें सबसे पहले मैं स्वयम शामिल हूँ ....क्या जो बात मैं आपसे पूछना चाहता हूँ .....उसमे तनिक भी सच्चाई का अंश मुझमें भी है ........??क्या मैं नैतिक हूँ ......??क्या मैं सच्चा हूँ ......??क्या मैं समूह...
शुक्रवार, 23 जनवरी 2009
करैक्टर कहाँ से लायें ...........!!.........(१)

करैक्टर कहाँ से लायें.............किसी भी व्यक्ति,समाज या देश के सही मायने में अथवा समूचे अर्थों में आगे बदने के लिए सबसे बढ़कर जिस चीज़ की आवश्यकता होती है....उस चीज़ का नाम है चरित्र.........!!हिन्दी में जिसे करैक्टर कहा जाता है........!!बिना इसके कोई आदमी,समाज अथवा देश बेशक आगे बढ़ता हुआ दिखायी दे........मगर उसमें वो ताब...वो ओज......वो ऊँचाई नहीं होती,जिनका अनुसरण कोई भी करे..........!!और हम देखते हैं कि हर चौक,चौराहे,गली,मोहल्ले........यानि...
गुरुवार, 22 जनवरी 2009
"साहित्यिका" जी के लिए.........ससम्मान......!!

कल इक कविता मैंने इक ब्लागर "साहित्यिका" की पढ़ी......और उनको जवाब (टिप्पणी)देने को मन यूँ मचल गया....और जो टिप्पणी दी.......वो इक कविता बन गई.. सन्दर्भ चाँद का था.........और मैंने जो लिखा वो आपको सुनाने को उत्सुक हुआ जा रहा हूँ.......लो जी...........आकांक्षाएं जिससे अधिक होती है साथ वही छोड़ कर चले जाते हैं.......ये दो पंक्तियाँ साहित्यिका जी की थीं उस कविता में .......और मैंने कहा ..... बस इक यही बात मैंने आपकी पकड़ ली है..........और...
गुरुवार, 22 जनवरी 2009
पता नहीं की ये साहब कौन हैं.........!!

अरे भाई सुनो-सुनो........कविता कोष के दरवाजे के बाहर इक पागल बैठा है...........खुदा जाने कौन है,पर वो ख़ुद को भूतनाथ कहता है !!दरवाजे को खटखटाते हुए वो अक्सर डरता रहता है क्यूंकि कोई भी उसको लोकप्रिय तो नहीं ही कहता है !!ना ही किन्ही भी पत्र-पत्रिकाओं में वो छपता रहता है ना ही किसी की भी वो लल्लो-चप्पो करता रहता है !!और यह भी उसको है भरम कि वो अच्छा लिखता है उसके सामने जैसे हर कोई गोया बच्चा जैसा दिखता है !!इक बात और,कि पागलों...
मंगलवार, 20 जनवरी 2009
कभी धुप चिलचिलाये.....!!

कभी धुप चिलचिलायेकभी शाम गीत गाये....!!जिसे अनसुना करूँ मैंवही कान में समाये.....!!उसमें है वो नजाकतकितना वो खिलखिलाए !!सरेआम ये कह रहा हूँमुझे कुछ नहीं है आए...!!चाँद भी है अपनी जगहतारे भी तो टिमटिमाये...!!जिसे जाना मुझसे आगेमुझपे वो चढ़ के जाए...!!रहना नहीं है "गाफिल"इतना भी जुड़ ना जाए.....
सोमवार, 19 जनवरी 2009
मियाँ "गाफिल" के शेर.........!!

दिल मुहब्बत से लबरेज़ हो गया था मिरे साथ वाकया क्या हुआ,पता नहीं !!अब और चलने से क्या होगा ऐ "गाफिल"हम तो सफर में ही अपने मुकाम रखते हैं...!!अपनी हसरतों का क्या करूँ मैं "गाफिल"इक साँस भी मिरी मर्ज़ी से नहीं आती.....!!इस तरह कटे दुःख के दिन दर्द आते रहे,हम गिनते रहे....!!बच्चे जब किताब थामते हैं...उदास हो जाया करते हैं खेल....!!वो मेरी रहनुमाई में लगा हुआ था और मेरा कहीं अता-पता ही न था !!कितने नेकबख्त इंसान हो तुम गाफिल हाय हाय...
रविवार, 18 जनवरी 2009
प्रेम जिसे कहते हैं.....!!
मचल जाए तो किसी ठौर से ना बांधा जाए......इस सकुचाहट के पीछे कितना कुछ बहता जाए......बंद आंखों से ये आंसू पीता जाए....और आँख खुले तो जैसे सैलाब सा बह जाए....बेशक मौन अपने मौन में.....दर्द ढेर सारे पी जाता हो......मगर मौन जो टूटे.....जिह्वा फफक कर रह जाए....समूची आत्मा को आंखों में उतार ले जो....प्रेम जिसे कहते हैं....वो पलकों पे उतर आए.....
रविवार, 18 जनवरी 2009
मुश्किलें......!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...जिनके हाथ इतने मजबूत हैं कितोड़ सकते हैं जो किसी भी गर्दन....!!मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...जो कर रहे हैं हर वक्त-किसी ना किसी का.....या सबका ही जीना हराम....!!मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...जिनके लिए जीवन एक खेल है...किसी को मार डालना ......उनके खेल का इक अटूट हिस्सा !!मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं...जो देश को कुछ भी नहीं समझते...और देश का संविधान....उनके पैरों की जूतियाँ....!!मुश्किलें...
शनिवार, 17 जनवरी 2009
अनिग्मा [Enigma]
अनिग्मा [Enig...
गुरुवार, 15 जनवरी 2009
अब हम यहाँ रहें कि वहाँ रहें........!!
अपने आप में सिमट कर रहें कि आपे से बाहर हो कर रहें !!बड़े दिनों से सोच रहे हैं किहम अब यहाँ रहें या वहाँ रहें !!दुनिया कोई दुश्मन तो नहीं दुनिया को आख़िर क्या कहें !!कुछ चट्टान हैं कुछ खाईयां जीवन दरिया है बहते ही रहे !!कुछ कहने की हसरत तो है अब उसके मुंह पर क्या कहें !!जो दिखायी तक भी नहीं देता अल्ला की बाबत चुप ही रहें !!बस इक मेहमां हैं हम "गाफिल "इस धरती पे तमीज से ही रहें...
बुधवार, 14 जनवरी 2009
वो रोये तो डर लगता है.....!!

वो रोये तो डर लगता है मेरी जान में वो बसता है !!वो हमसे जब भी मिलता है सहमा-सहमा-सा ही रहता है !!अक्सर ही शाम हो जाती है मुझी को वो देखा करता है !!हमने लाज तिरी रख ली है तू क्या वरना खुदा लगता है !!खुशी हरदम तो नहीं मिलती है गम में बहुत ही बुरा लगता है !!इक भी साँस रूक जाए है तो जीवन क्या ये जीवन रहता है !!क्या वो गम से बेदम हुआ है कितना तो हंसता ही रहता है !!हम तो वस्ल के मारे हैं "गाफिल"हिज्र का क्यूँ तू चर्चा करता है...
मंगलवार, 13 जनवरी 2009
शुभकामनाएं....आप सबको....!!
लोहडी़ की शुभकामनाएँ॥सुंदर मुंदरिए....होतेरा कौण विचारा...होदुल्ला भट्टी वाला...होदुल्ले दी धी विआही...होसेर शक्कर पाई....होकुडी़ दे बोझा पाई...होकुडी़ दा लाल पटका ...होकुडी़ दा सालू पाटा ....होसालू कोण समेटे...होचाचा चूरी कुट्टे....होगिन-गिन पोले लाए....होइक पोला रह गया,सिपाही फड़ के लै गियासानूं दे लोहडी़..........तेरी जीवे जोडी़........[हिन्दी मिलाप से साभार]उम्र कितनी तेजी से ढल रही है.....!!कौन सी आग मिरे दिल में जल रही हैये कैसी तमन्ना बार-बार मचल रही है !!ये कैसी मिरे रब की मसीहाई है हाय-हायधुप सर पे और पा पे...
सोमवार, 12 जनवरी 2009
ऐ रब!!सबकी जोड़ी बना दो ना.....!!

...........पता नहीं क्यूँ हम एक-दूसरे को समझ नहीं पाते..........या कि समझने की चेष्टा ही नहीं करते........या कि हमारा इगो हमें ऐसा करने से रोकता है....या कि कोई और ही बात है....या कि ये बात है तो आख़िर क्या बात है.... कि अग्नि को साक्षी मान कर लिए गए सात फेरों के बावजूद अपने इस तमाम जीवन-भर के साथी को समझने की ज़रा सी भी चेष्टा नहीं करते.....या कि हमारा जीवन-साथी हमारी जरा-सी भी परवाह नहीं करता....ये सब क्या है....ये सब क्यूँ है....ये...
सोमवार, 12 जनवरी 2009
उम्र कितनी तेजी से ढल रही है.....!!

कौन सी आग मिरे दिल में जल रही है ये कैसी तमन्ना बार-बार मचल रही है !!ये कैसी मिरे रब की मसीहाई है हाय-हाय धुप सर पे और पा पे छाया चल रही है !!आ-आके कानों में जाने क्या-क्या कहती है ये कौन-सी शै मिरे साथ-साथ चल रही है !!कभी थीं खुशियाँ और आज कितने गम हैं जिंदगी पल-पल कितने रंग बदल रही है !!इस जिंदगी को क्या तो मैं मायने दूँ उफ़ उम्र कितनी तेजी से "गाफिल" ढल रही है...
रविवार, 11 जनवरी 2009
झारखंड का मुख्यमंत्री कौन है मम्मी.....??

मम्मी झारखंड के मुख्यमंत्री कौन हैं....??.....मेरी सात साल की बच्ची ने अपनी मम्मी से पूछा.....मेरी पत्नी ने सवालिया निगाहों से मेरी और देखा और वही सवाल मुझपर दागा मेरे मुस्कुराने पर वो बोली...हँसते क्या हो मैं अखबार पढ़ती हूँ क्या...??आज बताती हूँ कि मरांडी हैं...तो कल मुंडा हो जाता है.....फिर कभी सोरेन....तो तीन बाद फिर मुंडा....कुछ दिन बाद फिर कौडा तो फिर सोरेन.....बच्चा सोरेन रटता है....तो फिर कोई चुनाव....और सोरेन की हार....और...
गुरुवार, 8 जनवरी 2009
हाय गाफिल हम क्या करें.....??
भीड़ में तनहा...दिल बिचारा नन्हा...साँस भी न ले सके,फिर क्या करे...??सोचते हैं हम...रात और दिन.....ये करें कि वो करें,हम क्या करें...??रात को तो रात चुपचाप होती है....इस चुप्पी को कैसे तोडें,क्या करें...??दिन को तपती धुप में,हर मोड़ पर...कितने चौराहे खड़े हैं हम क्या करें??सामना होते ही उनसे हाय-हाय....साँस रुक-रुक सी जाए है,क्या करें??कित्ता तनहा सीने में ये दिल अकेला इसको कोई जाए मिल,कि क्या करें??जुस्तजू ख़ुद की है"गाफिल",ढूंढे क्याख़ुद को गर मिल जाएँ हम तो क्या करे...
बुधवार, 7 जनवरी 2009
प्यारे दोस्तों.................
नीचे की तीनों पोस्टें आज की मेरी व्यथा हैं....सिर्फ़ मेरी कलम से निकलीं भर हैं....वरना हैं तो हम सब की ही.....जी करता है खूब रोएँ.....मगर जी चाहता है....सब कुछ को....इस जकड़न को तोड़ ही देन.....मगर जी तो जी है....इसका क्या...........दिल चाहता है.......................
बुधवार, 7 जनवरी 2009
यः आदमी इतना बदहाल क्यूँ है....??

गर खे रहा है नाव तू ऐ आदमी गैर के हाथ यह पतवार क्यूँ है...? तू अपनी मर्ज़ी का मालिक है गर तिरे चारों तरफ़ यः बाज़ार क्यूँ है...??हर कोई सभ्य है और बुद्धिमान भी हर कोई प्यार का तलबगार क्यूँ है....??इतनी ही शेखी है आदमियत की तो इस कदर ज़मीर का व्यापार क्यूँ है....??बाप रे कि खून इस कदर बिखरा हुआ...ये आदमी इतना भी खूंखार क्यूँ है...??हम जानवरों से बात नहीं करते "गाफिल"आदमी इतना तंगदिल,और बदहाल क्यूँ है...
बुधवार, 7 जनवरी 2009
ज़हर पी के नीले हो गए....!!

लो हमको रुलाई आ गई.....क्या तुम भी गीले हो गए.....??जिस रस्ते हम चल रहे थे....आज वो पथरीले हो गए....!!शाम से ही है दिल बुझा....पेडों के पत्ते पीले हो गए....!!इस थकान का मैं क्या करूँ....जिस्म सिले-सिले हो गए!!जख्म जो दिल पे लगे....रेत के वो टीले-टीले हो गए....!!"गाफिल" जिनका नाम है...ज़हर पी के नीले हो गए....!!...
बुधवार, 7 जनवरी 2009
आवन लागी है याद तिरी.......!!
आवन लागी याद तिरी.....दिल देखे है ये बाट तेरी.....!!कौन इधर से गुज़रा है.....अटकी जाती है साँस मिरी....!!फूल को डाल पे खिलने दो...देखत है इन्हे आँख मिरी .......!!कितना गुमसुम बैठा है.....बस दिल में इक है याद तिरी....!!बस इत उत ही तकती है.....आँख बनी हैं जोगन मिरी....!!किस किस्से को याद करूँ....याद जो आए जाए ना तिरी.....!!"गाफिल"मरना मुश्किल है...उसको देखे ना जान जाए मिरी......
रविवार, 4 जनवरी 2009
रंग कितने जीवन के.......!!??

जिन्दगी के रंग कई हैं......कई माने कई...कई...कई....और कई......इन रंगों के मायने क्या हैं....हम रंगों का मतलब क्या समझते हैं....हर प्राणी के छोटे से इक जीवन में कितने मुकाम...कितने पड़ाव आते हैं....और उस प्राणी को उन मुकामों से हासिल क्या होता है....!!आदमी के सन्दर्भ में ये सवाल ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है....क्यूंकि इस प्राणी- जगत में यही तो एक प्राणी ऐसा है....जिसे धन-दौलत-वैभव-मान-सम्मान और ना जाने क्या-क्या चाहिए होता है....महत्वकांक्षा...
शुक्रवार, 2 जनवरी 2009
यही तो जीवन है ना.............!!!!

............जीवन तो संघर्षों की आंच में पक-कर ही निखरता है....उसमें एक गहराई भी तभी आती है...उसी गहराई से आदमी,आदमी कहलाने लायक बनता है.. और जिनका नाम लेकर आपने लिखा है....वो नाम भी पैदा होता है.....असल में संघर्ष किए हुए व्यक्ति के प्रति हमारे दिल में सम्मान की एक अतिरिक्त भावना होती है....जो उसके संघर्ष को हमारा सलाम होती है....बेशक हम ख़ुद कोई काम,कोई संघर्ष करें या ना करें....मगर एक संघर्ष किए हुए तपे हुए....और साथ ही जो ईमानदार...
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