भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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गुरुवार, 7 अगस्त 2014

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

मैं भूत बोल रहा हूँ !!
हा-हा-हा-हा .....!!!! बंद! बंद! बंद! बंद!! हाँ-हाँ बिल्कुल यही सब तो देखता हुआ मै आपकी इसी रांची से परलोक की और कूच कर गया था !!बिल्कुल आपलोगों की तरह खामोश और भयभीत!!
कुछ लोग अपने घरों में दुबक गए हैं,क्योंकि कुछ लोग सड़कों पर भड़क गए हैं !!कुछ लोग कि जिनके चहरे हैं या लाठी ,डंडे और हथियार हैं,कुछ लोग कि जिनके ऊपर पागलपन सवार है ,कुछ लोग जो अपने गुस्से की नाव पर सवार हैं......और कुछ लोग जो अपने-अपने घरों में बेबस और बेदार हैं!!ये लोग कौन हैं...वे लोग कौन हैं !!
कोई गाड़ी किसी को चीप दे तो बंद!कोई किसी को मार दे तो बंद!कोई सड़क पर मर जाए तो बंद!कोई किसी की बात न माने तो बंद!कभी इसके समर्थन में बंद!कभी उसके विरोध में बंद!कभी मन्दिर का बंद!कभी मस्जिद का बंद!कभी इस दल का बंद!कभी उस दल का बंद!आज आदिवासी बंद!कल गैर-आदिवासी बंद!
असल में अब तो झारखण्ड में बंद की खुशियाँ मनाई जानी चाहिए,बाकायदा मिठाइयाँ बांटी जानी चाहिए!
नाच-गाने नगाडे की थाप पर बजाते झूमते लोगों की टोलियाँ जगह-जगह मस्ती करती नज़र आए तो समझिए यही अपने सपनो का सुंदर-सा,प्यारा-सा झारखण्ड है!!आज रांची बंद,हांजी!कल टाटा बंद,हांजी!परसों गुमला बंद,हांजी!फिर दुमका बंद,हांजी!..........सुनो ...सुनो...सुनो.....सरकार का ये फरमान है कि अब उसका बस किसी पर नहीं चलता है इसलिये जो शहर जिसके बाप का है वो उसे बंद करा ले !!खुला होना वैसे भी प्रशासन का सिरदर्द है,कौन जाने, कब कहाँ ,कैसा बम फट जाए!!लोग घरों में ही बंद रहें यही अच्छा है!!ना रहे बांस ...ना बजे बांसूरी !! मैं भी सौऊँ ,तू भी सो ...फ़िर सब कुछ अच्छा हो!!सब कोई अपने -अपने घर में सोएं,तो देश में बढ़ता बच्चा हो.... ज्यादा बच्चा माने ज्यादा मानवीय-श्रम की ताकत,ज्यादा श्रम माने देश का ज्यादा विकाश !!यही तो चाहते हैं सब आज!!इसलिये झारखण्ड के नक्शे-कदम पर चलो,हर तरफ बंद-बंद-बंद करते चलो !!! ठप्प हो जाए बिसनेस और व्यापार!!हों जाएँ यहाँ के लोग बेरोजगार!!और बंद से ही हो जाए सबको प्यार!!इस बंद के लोगो का बन जाए देश का इक झंडा,और जो बांको न माने,उसको पड़े इक तेल पिलाया डंडा !!जो परीक्षा में पास हो ,उसे मिले अंडा!!
और जो हो फेल ,वो फहराए योग्यता का झंडा!!!हा-हा-हा-हा!!!सब कोई करो रे मिल के बंद ,क्योंकि यही तो है तकनीक के इस युग में विकास झारखंडी फंदा!!
झूमो रे..नाचो रे आज...गाओ खुशी के गीत रे..गाओ खुशी के गीत रे .....आज बंद था, कल बंद होगा ...... पिछडेपन का सेहरा हमारे सर पर होगा!!!! मैं भूत बोल रहा हूँ ...मगर परलोक में भी झारखण्ड के आम लोगों... नेताओं... अफसरों... मंत्रियों .... ठेकेदारों के कारनामों से व्यथित होकर पागलों की तरह यहाँ से वहां ढोल रहा हूँ...
रब्बा खैर करे यहाँ के लोगों की....लोगों कुछ करो वरना ये लोग तुम्हारे साथ-साथ इस नवोदित राज्य को भी खा जायेंगे...तुम्हारे निशान भी यहाँ रह नही पाएंगे!!!!!

क्या यह सब एक मजाक है ??(भूतनाथ)एक था देश,

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
क्या यह सब एक मजाक है ??(भूतनाथ)एक था देश,
एक था देश,बड़ा ही विभिन्नताओं वाला और विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाने वाला !!इस देश की लोक - तांत्रिकता इतनी बहुमुखी और उदार थी कि यहाँ कोई भी कुछ भी करता रहता था,किसी पर भी कोई बंदिश या पाबंदी वगैरह बिल्कुल नहीं थीं और थोडी- बहुत अगर थी भी तो वह सिर्फ़ गरीब और मजलूमों के लिए ही थीं !! देश की इस उदारता का लाभ देश के तमाम लोग तमाम वक्त उठाया करते थे,हर जगह गन्दगी करने,मल-मूत्र निकास करने वगैरह के लिए तो खैर देश में कोई कमी ही न थी,मगर हद तो यहाँ तक थी कि यह देश तमाम तरह के आतंकवादिओं और देशद्रोहियों की भी पनाहगाह था ,अचरज की बात तो यही थी कि इस देश की तमाम जेलों में तो आधे से ज्यादा लोग तो निर्दोष ही कैद रहते थे, मगर दुर्दांत से दुर्दांत अपराधी,हत्यारे,लूटेरे, व्यभिचारी,आतंकवादी और देशद्रोही छुट्टे सांड की तरह खुलेआम अपने "लिंग"(ताकत)का प्रदर्शन करते घुमते रहते थे !!तथा बड़े आराम से वे रंगधारी वसूलते,डकैती करते, गोली-चाकू या कुछ भी चलाते,माँ-बहनों की इज्ज़त लूटते,जमीन हड़पते,किडनैप करते या कुछ भी ऐसा करते , जिससे लोगों की जिंदगी हराम होती थी,कर के किसी नेता या किसी सफेदपोश की पनाह में चूहों की तरह छिप जाते थे !!...मज़ा यह कि सारी राज्य-सरकारें और केन्द्र-सरकार उनकी पनाहगाह और पनाह्गारों का पता जानती थी,मगर भूले से भी उनके गिरेबान हाँथ नहीं डालती थीं,किसी ऊपर की गाज गिरने की संभावना तथा अपने भविष्य के मटियामेट होने से डरती थीं !!बेशक इस डर से देश ही क्यूँ न मटियामेट हो जा रहा हो!!और वह देश सचमुच वहां के आम लोगों की कब्रगाह होता जा रहा था !!क्योंकि उस देश का कानून भी इतना पेचीदा था कि एक साफ़ तौर पर मुकम्मल अपराधी और देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक व्यक्ति को भी सज़ा होते- होते वर्षों-वरस लग जाते थे !!तुर्रा यह कि अधिकाँश लोग तो बा-इज्ज़त !!ही बरी हो जाते थे,बहुत कम मामलों
दोषियों को सज़ा मिल पाती थी !!सो कानून की जटिलता और राजनीतिकों के द्वारा अपराधियों को संरक्षण देने के कारण समयांतर में ऐसे लोगों का मनोबल इतना ज्यादा बढ़ गया कि जिन आतंकवादियों को किसी पश्चिमी देश में मच्छर की तरह मसल दिया जाता,वे टुच्चे लोग यहाँ ई-मेल करके देश को बताते कि आज अमुक शहर में इतने स्थानों पर बम का धमाका कर पूरे शहर को दहला दिया जाएगा !!और सचमुच अगले कुछ ही मिनटों
सारा शहर थर्रा देने वाली चीखों और रोंगटे खड़े कर देने वाले बम-धमाकों से सुबक उठता !!बेशक वहां खुफिया एजेंसी और देश की सुरक्षा के लिए काम करने वाली कई संस्थाएं मौजूद हों ....मुस्तैद अलबत्ता नहीं थीं!!आए दिन शहर-दर-शहर एक- के-बाद-एक धमाकों से पूरा शहर हिल जाता.....और पूरा तंत्र यकायक जाग उठता ....अच्छा जी !हाँ जी !नहीं जी !ठीक है जी !अबके नहीं होगा जी !हम इस सबका जवाब देने को तैयार हैं जी ! ये देश शत्रु हैं जी !बस चार दिनों में इनसे निबट लेंगे जी !ये कायरतापूर्ण कृत्य है जी !!....और अगले चार दिनों में कोई कारवाई होती-ना-होती....तमाम महकमे फिर खर्राटे भरते दिखाई देते.....!!और चार हफ्ते बीतते-न- बीतते फिर वैसे ही धमाकों से सब चौंक पड़ते !!हालत तो यहाँ तक थी कि देश की राजधानी भी इन सबसे महफूज़ न थीं ,बल्कि वह बार-बार इसका निशाना बनती थी ! ऐसा लगता था कि आम आदमी से ज्यादा वहां आतंकवादी ही सुरक्षित थे,क्योकि देश संसद तक को वे नहीं छोड़ते थे !!उस नामालूम से नाम वाले देश की राजधानी का नाम बिल्ली या ऐसा ही कुछ था !!मगर बिल्ली बेचारी बचती तो बचती कैसे ??क्योकि उसे कुत्ते नोच-नोच कर खा रहे थे !और उस देश के तो कुत्ते,कहते हैं,हड्डी भी नहीं छोड़ते थे !!

सबको गाफिल प्यार करें !!

सबको हो मंगलमय दीपावली
सब बातें करे अब भली-भली !!
सब काम आयें अब सबके
सबमें हो इक जिन्दादिली !!
सब एक दुसरे को थाम
लें सबमे भर जाए दरियादिली !!
हर आदमी में कुछ ख़ास हो
हर आदमी में इक खलबली !!
हर आदमी को खुशियाँ मिले
और गम को मारे आकर खली !!
आज गम और कल है
ख़ुशी ये जिंदगी बड़ी है चुलबुली !!
आओ प्यार कर लें "गाफिल"
फिर जिन्दगी जायेगी चली !!
हम हर जगह क्या-क्या ढूंढा करें !!
हम हर जगह क्या-क्या ढूंढा करें....
किसी के भी पास में सहारा ढूँढा करें !!
मालुम है कि ख्वाब टूट जाते हैं मगर ,
दिन-रात कोई-न-कोई ख्वाब सब बुना करें !!
अच्छा जो भी है अपनी जगह वो पायेगा ,
अच्छा हो कि हम अच्छों को चुना करें !!
आदमियों के बीच भी वीराना लगता है ,
बेहतर हो कि हम तनहा ही घूमा करें !!
सबसे बड़ा खुदा है...और खुदा ही रहेगा ,
क्यों बन्दों में हम बड़प्पन के गुण ढूंढा करें !!
सद्गुण ही काम आयेंगे तुमको ऐ "गाफिल" ,
जो गुण हम इक इंसान में हरदम ढूंढा करें !!
गुरुवार, 31 जुलाई 2014

aaj aur kal.......ka likha kuch-kuch.....

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

aaj aur kal.......ka likha kuch-kuch.....

June 30, 2014 at 11:39pm
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अच्छी चीजें  जहां  भी  मिल  जाएँ 
आपस  में  आओ  हम  साझा  कर  लें 
अच्छी  चीजों  का  होना  उतना  ही  कमतर  है 
जितनी  कि  कमतर  हमारी  खुद  की  उम्र ....!!
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हम कहते हैं कि धरती पर सबसे सभ्य हैं हम 
मगर परिंदे भी बोलते हैं हमसे ज्यादा मीठा
कभी नहीं सोचते हम कि 
हमारी बोली से से बाहर आ जाता है अक्सर 
हमारा पूरा-का-पूरा चरित्र 
पता नहीं क्यूँ खुद को सभ्य कहने वाले हम सब 
सभ्यता से परे का आचरण करते रहते हैं 
और सोचते हैं कि जैसे कुछ हुआ ही न हो 
हमारी कथनी और करनी का अंतर जग-जाहिर है 
मगर हमें नहीं लगता कि 
हममे गलत भी है कुछ भी !!
हमारा यही अभिमान हमें डुबोये देता है 
लेकिन हमें नहीं लगता कि हम अभिमानी हैं !
इस तरह तमाम तरह के व्यभिचार करते हुए हम 
अपनी ही नज़र में खुद को सभ्य समझे जाते हैं 
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शायर ने कहा है 
किताबे-माज़ी के पन्ने उलट के देख जरा 
ना जाने कौन सा सफा मुड़ा हुआ निकले !!
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शायर ने कहा है 
जो देखने में बहुत करीब लगता है 
उसी के बारे में सोचो तो फासला निकले !! 
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Tina Gulzar
31 mins · Edited
“तेरा ख्याल , 
मेरी आदत
रूह के रेगज़ारों में 
तन्हा चलना , 
मेरी फितरत --
एक सांस से 
दूसरी तलक का सफर
और दरमियाँ
हज़ारों नसों से गुज़र के 
अजन्मी धड़कनों का 
ज़ेहन के तूफानों में ठहरना , 
साहिलों पे डूबना 
लहू में जलना
सर उठाना मगर 
दब के मर जाना 
कहो यही है ना ,
"हँसते हुए रो लेना 
मरते हुए जी लेना" ………………”.
...........©2014-.डॉ..टीना गुलज़ार...

तू कि बस इक ख्याल भर ही नहीं है 
ख्याल होता तो कब का उड़ गया होता
तेरा होना पता नहीं क्यों मिरी जिंदगी में 
मेरे खुद के होने से बहुत जियादा है 
मेरी फितरत जो खुद ने मुझे सौंपी है 
आदतन मैं उसका कायल हूँ 
क्यूँ कि तू बहुत दूर हो या बहुत पास 
तुझे मेरे ख्यालों से के भीतर रहकर भी 
मेरे आसपास ही कहीं रहना है और 
मुझे मेरे भीतर से कहीं बाहर निकलकर    
तेरी हकीकत के आसपास मंडराना है 
मैं ख्यालों की एक बहुत गहरी घाटी में हूँ 
और तू मेरे ख्यालों की ऊंचाईयों से बहुत ऊपर 
किसी बहुत ऊँचे पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पे है
मुझे नहीं पता कि तुझे पाने का ख्याल 
मेरा इक सपना भर भी हो सकता है 
मगर वो सपना हर हकीकत पे भारी है 
मैं जानता हूँ ख्यालों की चोटियों पे चढ़ते हुए 
तेरी इक ना के पत्थर से हमेशा-हमेशा के लिए 
मेरा वजूद गहरी घाटियों में गुम हो सकता है 
मगर तुम नहीं जानते कि गहरी घाटियों से 
पुकारी गयी आवाज़ और भी ज्यादा गूंजती है 
और वो गहरी घाटी अगर मुहब्बत की हो......!!!???
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बांधना है
ख़लाओं को ,
ख़लाओं में
खो जाने से पहले , 
गिरहें और कसो 
और कसो --
पहुंचना है तुझ तक ,
ज़र्रों की तरह 
बिखरने से पहले 
ज़ंजीरों को हटाओ 
पंख उफ़क़ तक फैलाओ 
उड़ जाओ……………........©2014-.डॉ..टीना गुलज़ार...
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उड़ना तो कभी नहीं चाहा खुद को कभी 
मगर अक्सर खुद को उड़ते हुए ही पाया 
बहुत दूर उड़-उड़ आया मैं बादलों के पार 
मैंने नाप डाला था कभी दिग-दिगंत 
मगर वो तो बहुत पहले की बात है 
वो बात तुझसे मिलने के पहले की बात है 
तुझसे मिलने के बाद मेरा आज़ाद पंछी 
अपने आप ही किसी आगोश में बंध गया है 
किसी जंजीर को कभी पसंद नहीं किया मैंने 
मगर आज तुम मेरी जंजीर बन गए हो 
गिरहें अपने आप कस गयीं हैं मेरी रूह में 
पंख तो आज भी फड़फड़ाता हूँ आज भी मैं 
मगर तेरे आँचल से दूर जाने को जी नहीं चाहता 
मैंने बना लिया है तुझको ही अब अपना आसमां
और उड़ता फिरता हूँ तुझमें दूर-दूर तलक
अगरचे तू कभी हो जाए न दूर मुझसे !!
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बात ही बात में जो बात कही थी मैंने 
उस बात पे अब तक चला आ रहा हूँ !!
किसी बात से मुकरना फितरत न थी 
इसलिए कुछ बातों से तकलीफ पा रहा हूँ !!
मीठी-मीठी बातों से बात बनाना न आया 
मैं तो बात निभाने की सजा पा रहा हूँ !!
अपने दिल में अब मन ही कहाँ लगता है 
मैं अब भी तेरे दिल से निकलकर आ रहा हूँ !!
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मौत की आहट है मेरे आसपास ही कहीं 
मैं जी रहा हूँ यूँ ही बेखटके अपने साथ यहीं !! 
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अपना दिल हाथ में ही लिए आया हूँ,ये लीजिये 
भले इसके बगैर आप हमें कुछ न दीजिये !!
जिंदगी में इक चीज़ के संग दूसरी को आना है 
ये क्या कि इसे पसंद करिये,उससे गिला कीजिये !!
किसी न किसी तरह आप याद हमको रहिये 
वफ़ा मत न कीजिये भले बेवफाई ही कीजिये !!
हमें तो सिर्फ इश्क करना ही आता है ग़ाफ़िल 
ऐसा कीजिये आप हमें नफरत सीखा दीजिये !!

आज जो लिखा 06-07-2014

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

आज जो लिखा 06-07-2014

July 6, 2014 at 4:36pm
आज जो लिखा 
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करवटें बदलतें हैं हम रात और दिन 
हम छुप गए तो तुम ढूँढ़ते रह जाओगे !!
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आएंगे-आएंगे-आएंगे 
बुरे दिनों को बिताकर 
अच्छे दिन भी आएंगे 
अब ये न हमसे पूछो तुम 
कि बुरे दिन कब तक जाएंगे !!
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दिल में गर दर्द न हो तो ग़मों में भी वो रौनक नहीं होती 
और सब रंगों के बगैर जीवन में कोई जीनत नहीं होती !!
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जिंदगी इतनी उफ!!बेचैन हो-होकर गुजरी 
अब भी मैं कब्र से उठकर खड़ा हो जाता हूँ !!
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जो तू कहता है कि मैं टूटकर बिखर क्यों नहीं जाता 
ज़रा गौर से तू मुझको देख कि मुझमें जुड़ा हुआ क्या है !!
दर्द ही अब मिरी जिंदगी बन कर रह गए हैं ग़ाफ़िल 
तेरे बगैर तू ही बता ना कि मिरी जिंदगी में ज़िंदा क्या है !!  
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हम तो ये भी कह नहीं सकते 
जी रहे थे जिंदगी जो,मेरी थी 
जब से देखा था तुझे अ जाना 
हर एक सांस तक बस तेरी थी !!
ना जो कहना था तो पहले क्यूँ न कहा 
मैंने कब कहा कि पहल मेरी थी 
गुम हुए तुम और गुम हुआ वक्त भी 
इश्क की रात लम्बी थी अँधेरी थी !!
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ना तो कह दी मगर इंसान के नाते 
अब भी रुक जाओ तो बुरा क्या है !!
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उसको मुझसे कर दे दूर,बस यही इल्तिज़ा है 
इतनी खुशियां मेरे दिल को हज़म नहीं होती !!
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आदमी को मुश्किल है आदमी से मगर मुश्किल तो ये है 
आदमी सारी धरती के लिए मुश्किलें खड़ी किये जाता है !!
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बरसेगी बिजलियाँ और धरती तबाह हो जायेगी 
अब भी अगर अक्ल नहीं आदमी को आएगी !!
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तेरा पैदा किया इन्सां बेशक इन्सां नहीं है यारब 
अक्ल आती नहीं इसे कुछ भी हो जाने के बाद !!
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उसे देखकर सिर्फ मैं ही नहीं सोचता 
खुदा भी एकबारगी सोच में पड़ जाता है !!  
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जिस दिन ऐसा लगा कि मैं लिख नहीं सकता,गा नहीं सकता
उस दिन मैं नहीं सोचता कि मैं एक पल भी ज़िंदा रह पाउँगा !! 
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ऐसा लगता है कि मैं उसे 
टूट के चाहने लगा हूँ !!
इक लम्बी उम्र चल कर 
इक ख्वाब से जागने लगा हूँ !!
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सच कहूँ तो कुछ लम्हों के मंज़र 
आज में मेरी आँखों में ज़िंदा हैं !!
उफ़ मगर ये मेरी उम्र कमबख्त 
हवा में उड़ता इक परिंदा है !!
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हम बूढ़े होंगे किसी कमबख्त की नज़र में 
खुद को तो हम अब भी बच्चे नज़र आते हैं !!
इक लम्बी उम्र गुजारकर चले आते हैं पर 
लोगों के दिलों से और ज्यादा खेलते जाते हैं !!
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४४ सालों को वो बूढ़ा होना बताता है 
या तो बावला है वो,या संजीदा ज्यादा है !!
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आओ मेरे पास बैठो 
मैं तुम्हें बताता हूँ कि
जिंदगी तनिक भी संजीदा नहीं 
वो कहीं तो इक खेल है 
और कहीं और कुछ 
उसे दरअसल संजीदा होना भी नहीं आता 
पता है क्यों 
क्यूंकि हमने जो कारनामें किये हैं अब तक 
उनपर अगर संजीदा हुआ जाए तो 
धरती के कानूनों के अनुसार हमें 
हम सबको फांसी पे चढ़ा देना लाजिमी है 
आदमी ने अच्छे-अच्छे शब्द रचने के सिवा 
जानते भी हो ??क्या किया है भला 
आओ बैठो !!मैं तुम्हें बताता हूँ कि
तुम्हरी प्रगति पे 
तुम्हारी ही जिंदगी बेहद खफा है
पता भी है क्यों !!
क्यों कि तुम्हारी भागा-दौड़ी में वो 
हांफ रही है और थक भी गयी है !!
अरे किससे प्रतिस्पर्धा करते हो तुम और 
किसे सुन्दर बनाने के लिए हैं तुम्हारे सब काम ??
आओ मैं तुम्हें बताता हूँ कि
संजीदगी अगर ऐसी है आदम की
तो दरअसल वो भी इक बीमारी ही है 
संजीदगी ने अगर वास्तव में 
कुछ अच्छा ही करना चाहा होता 
तो दुनिया खूबसूरत होती,होती ना ??
अब जो दुनिया तुम्हारे सपनों की नहीं है 
तो आओ बैठो,विचार करो 
कि तुम्हारा संजीदा होना क्या है !!
अगर दुनिया में तुम हंस खेल न सके ! और 
अगर दुनिया को बच्चों की तरह न देख सके
आओ बैठो !मैं तुम्हें कुछ बताऊँ 
कि एक शायर ने कहा है 
तुम्हें राजे मुहब्बत क्या बताएं 
तुम्हारे खेलने-खाने के दिन हैं !!
[यह कविता किसी की भी संजीदगी पर जरा सा भी आक्षेप नहीं है]  

pichhla kuchh.....

पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि अंग्रेजी बोलने वाले लोगों ने अपने अंग्रेजी बोल पाने की योग्यता के कारण "ज्ञान" नाम की चीज़ को भी अपनी बपौती समझा हुआ है,एक विशेष शैली में एक विशेष भाषा को अपने विशेष मित्रों में अपने संवाद एक गर्व-पूर्ण तरीके से प्रेषित करना और उसी भाषा के अन्य विशिष्ठ टोन में बाकी के सामान्य नागरिकों, यथा नौकर,स्टाफ,रिक्शे,ठेले,मजदूर आदि लोगों से सम्बोधित होना और पश्चिमी संस्कार को विशिष्ठ समझना और अपनी समूची परम्पराओं को महज कूड़ा-करकट समझना और उन्हें एकदम से तिलांजलि दे देना ही जैसे अग्रेज़ीदाँ लोगों का मुख्य शगल है !! 
               और तो और सिर्फ अंग्रेजी में बोले जाने के कारण एक बिलकुल सामान्य सी बात को विशिष्ठ समझना यह बाकी लोगों की मासूमियत भरी मूर्खता !!किसी एक भाषा या बोली बोलने वाले द्वारा किसी दूसरे स्थानीय बोली बोलने वाले को हीन समझने का अहसास दिलाना,यह अपने-आप में यह बताने के लिए पर्याप्त है कि बोली की विशिष्ठता किसी को बड़े दिल वाला नहीं बनाती,बल्कि भारत के मामले में तो ठीक इसका उल्टा ही है,जहां बरसों-बरस से विदेशी भाषा बोलने वालों ने स्थानीय बोली बोलने वालों को सायास दोयम दर्ज़े का ठहराया है,इससे स्थानीय भारतीयता के आत्सम्मान को गहन क्षति पहुंची है साथ ही साथ अपने इंसान होने के गौरव तथा आत्मविश्वास को भी खोया है !!
               अक्सर ऐसा देखा गया है कि किसी अंग्रेजी बोलने वाले के सामने  एक देशी बोली बोलने वाला व्यक्ति या व्यक्ति-समूह खुद को बिलकुल निरीह महसूस करता है,अब यह बात अलग है कि किसी का भी अपने मातहत,कर्मचारी,नौकर,आम आदमी या किसी को भी महज अपनी बोली के चलते अपमानित करना किसी भी दृष्टि से सभ्यता की निशानी नहीं कही जा सकती !
               अपनी भाषा को अपना संस्कार,अपना आत्मसम्मान,अपना गौरव,अपना स्वाभिमान न समझने के चलते एक विकासशील देश किस तरह अपने समस्त साधनों के बावजूद किस तरह दीन-हीन और श्री-हीन हो जाता है, इसका एक सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है यह देश और दुर्भाग्य यह है कि इस देश के समस्त कर्णधार सदैव अंग्रेजीदां ही रहे हैं और उन्हें देश के आम आदमी के आत्सम्मान या स्वाभिमान से कोई मतलब ही नहीं रहा है और हम एक ऐसे उस देश में रहते हैं जिसकी क्षमता अपार-असीम है मगर जो अपने एकाध फीसदी लोगों के अलावा बाकी की समूची जनता को कभी  यह बोध नहीं दे सका है कि वो भारत नाम के एक गौरवशाली देश में रहते हैं !!
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उसके शहर में और मेरे शहर में इतना फर्क क्यूँ है 
कल जो उसके शहर में होता,तो ईदी कहाँ मिलती !!
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जान बूझकर काँटों में पाँव रखते हैं हम
जख्म मिलते हैं तो औरों से गिला करते हैं !!
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अपनी अंटी पे पैसे तो नहीं मिलते 
हम तो चुपचाप दुःखों को चुरा लाते हैं
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मैं फैला हूँ यहाँ से वहां 
बाहर की नज़र से अनंत तक
भीतर की नज़र से दिगंत तक 
मैं अपने अंदर से बाहर तक
मेरे तेरे बाहर से अंदर तक 
फैला हुआ हूँ तेरी रूह की तरह 
तू अचम्भित सा मुझे न देख 
मैं बिलकुल सामान्य सा विराट हूँ 
दरअसल 
मैं तुझमें भी आकाश हूँ !!
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अन्दर ही अन्दर बहता रहा 
तुमपे उन्वाँ न हुआ 
दिल से निकली थी दुआ 
तुमको पता ही न चला 
सांझ को खुद में ही 
मैं तुझे देखता ही रहा 
तेरे सामने में मगर 
तुझको कभी कुछ न कहा 
दिल मेरा रोता रहा बारहां 
तुझको पर हंस के देखा किया 
मुझपे तेरा ये गलत है ईल्जां
जो भी पास था मेरे 
वो सब तुझको दिया !!
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मैं हूँ और नहीं हूँ 
कहीं और हूँ 
कहीं और ही हूँ 
अनमना हूँ 
बच्चे की तरह 
जिसे अपनी पसंद का 
खिलौना न मिला !!
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इक तेरा ख्याल आते ही कैसा-सा तो खिल उठता हूँ 
जिन्दगी मिल जाती हो गोया और मैं जी उठता हूँ !!
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खुरदरी सोचों के संग इक खुरदरा चेहरा हूँ 
मैं जैसे मैं नहीं हूँ,जिन्दगी का इक मोहरा हूँ !!
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पता नहीं अपने ही ज्यादा तकलीफ देते हैं या 
अपनों द्वारा दी गयी तकलीफ हमें ज्यादा लगती है !!
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अपना चेहरा यों संवारें 
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अपने जीवन के भरपूर खुशियों के तमाम लम्हों को दो चम्मच खांड के साथ एक छोटी कटोरी में पौने दो सौ ग्राम दही के साथ मिलाकर चेहरे पे लगाएं,आपका चेहरा खुशियों से भी ज्यादा खिल-खिल उठेगा,गम वालें दिनों में ये नुस्खा ज्यादा उपयोगी होता है !!इसे अवश्य आजमाएं
और हमें सूचित करें कि यह कैसा लगा !!
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बागवानी की बातें 
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अगर आपके आंगन में थोड़ी सी कच्ची जमीन हो तो बेहतर वर्ना एक बड़ा सा गमला या टीना लें और उसमें यादों का एक बीज रोपें और उसे रोज पानी-खाद आदि देना शुरूं करें,और हाँ रोज सुबह-शाम उससे बातें करें !!थोड़े दिनों में ही वो वृक्ष बन जाएगा !!अब आप उससे अपने गुजरे दिनों की यादों के तमाम फल खा सकते हैं साथ ही झूला भी झूल सकते हैं,पक्षियों की बातें और हवा तथा छाया बिलकुल मुफ्त.....ये आयडिया आपको कैसा लगा,इसके लिए हमें अवश्य लिखें !!! 
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रसोई की बातें
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एक सरोता लीजिये,बड़ा चाक़ू भी चलेगा 
अपने सारे ग़मों को अपने चेतन मन के डीप-फ्रीज़र से निकाल कर सरोते या चाक़ू से पीस-पीस काटिए,और फिर कड़ाही में अपनी इच्छानुसार मसाला डाल कर भून लीजिये,तरीदार बनाने पर गले से अच्छी तरह नीचे उतरेगा !!
यह तरकारी कैसी लगी,यह हमें अवश्य लिखें !!
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होशियार-खबरदार-अलमबरदार-चौकीदार-सेवादार.....सरदार.....
फेसबुक की मित्रता पर ज्यादा न रीझें कोई.....ज्यादातर रिश्ते यहाँ भी ऐंवेई हैं.....जिन्दगी के बाकी के रिश्तों की तरह.....और इस हकीकत का गम मनाने की कोई आवश्यकता नहीं....क्यूंकि जब जिन्दगी ही ऐसी है तो मातम किस बात का......मस्त रहिये.....अपनी और से ईमानदार भी....फिर भी दोस्ती कायम न रहे तो गम न मनाइये !!
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पेचीदा सी ये गलियाँ और 
हम और मुश्किल कर देते हैं 
बहुत सी आसान चीजों को
बेकार ही मुश्किल कर देते हैं !!
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सच पूछो तो झूठ ज्यादा गुस्सा करता है
क्यूंकि उसे अपनी धरती के होने का यकीं नहीं होता !!
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इस तरह मुझसे निकल के न जा ए जान मेरी 
तुझसे जुड़ा हुआ हूँ मैं तो बरसों से 
मेरे रेज़े रेज़े पर तेरी रहमत है 
तुझ ही से तो जिस्म की मेरी जीनत है 
आह जान ले न मेरी तू इस तरह 
रूह तड़प जाती है मेरी इस तरह 
जान लेनी भी है गर तुझे मेरी 
हाथ गले में डाल कर मिल मुहब्बत से मुझे 
जिस पल मैं आया था यहाँ 
चुपके से तू भी चली आई थी 
कदम दर कदम साथ चलते मेरे संग आई थी 
इतने बरसों बाट जोही है मेरी,जानता हूँ 
कितनी शिद्दत से मुझे चाहती है,जानता हूँ 
तो आजा चल मैं तेरी बाहों में हूँ
चूम ले मुझको मैं तेरी पनाहों में हूँ !!
मेरी जानां तुझे मालूम क्या 
कि मैं भी तुझे चाहता हूँ 
पागलों की तरह तुझसे मिलना चाहता हूँ 
आके चलके तू लेके चल मुझे 
देख तेरी गोद में कितना अच्छा लग रहा मुझे 
मौत रानी आ आ आ आ जा तू 
मेरी बाहों में बावली सी समा जा तू !!

pichhla kuchh........ July 31, 2014 at 6:24pm

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

pichhla kuchh........

July 31, 2014 at 6:24pm
पत्थर तराशते हाथ की लकीरें तक मिट जाती हैं 
इस बीच यूँ होता है कि हम खुद संवर जाते हैं !!
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तजुर्बों से यूँ तो बहुत कुछ नहीं होता
जिन्दगी अपने तरीकों से हमें सीखा देती है !!
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अपनी खामोशी जो अक्सर हम कह जाते हैं 
उसमें बहुत गहरे तज़ुर्मे छुपे होते हैं !!
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ना जाने क्यूँ वो खामोश खड़ा है 
उसकी खामोशी से डर लगता है !!
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इक हवा है ज़रा सी
जाने कब तूफान बन जाए
ना जाने जिन्दगी का क्या-क्या कुछ उड़ा ले जाए !!
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तेरी आँखों में सपनों का इक समन्दर है 
तेरा सब कुछ ही उन सपनों के अन्दर है 
कुछ हकीकतें हैं जो सपनों से टकराती हैं
सपनों/हकीकतों की टूटने की आवाज़ आती है !!
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ना जाने किस-किस जगह पे 
तलाश करते हैं हम खुदा की
अपने आसपास ही अक्सर 
मिल जाता है इंसान कभी-कभी !!
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आग हूँ आतिश हूँ 
बर्क हूँ या शरार हूँ 
उफ़ मैं हूँ क्या गाफिल 
जीस्तो-मौत का करार हूँ !!
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खुद को ही अगर आदमी ने पहचान लिया होता 
किसी दूसरे में फिर कोई बूरा कहाँ होता !!
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बहुत सा कुछ कुछ 
मिलकर जिन्दगी सबकुछ 
पल पल करके सब पल 
सांस सांस करके इक 
आखिरी सांस भी आ जाती है !!
चलती हूँ यारा,ये कहकर 
जिन्दगी लेकर चली जाती है !!
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आदमी को पहचानना बहुत कठिन है,सच तो ये है कि जितना कठिन बुरे आदमी को पहचानना है उतना ही अच्छे को भी....जरा सोच कर तो देखो तो कितने अच्छों को पहचान पाते हैं हम लोग...!!
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मुस्कुराता हूआ हंसता हुआ 
रौशनी के नूर में नहाता हुआ
सुनहरी आभा सा दमकता हुआ 
यार मेरा मुहब्बत-सा बरसता हुआ !!
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बस कि रिश्ते ही जीवन को महकाते हैं 
यूँ तो जीवन में लोग आते हैं,जाते हैं !!
जिन्दगी जी जा सकती है सिर्फ मुहब्बत में 
लोग न जाने क्यूँ फिर भी नफरत भड़काते हैं !!
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ख्वाब को अब मुकम्मल न कर मेरे यारब
उम्र को कट जाने दे नींद के इंतज़ार में ही !!
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राह दुश्वार-सी है जिन्दगी की उसके बगैर 
कुछ भी भाए नहीं है उफ़ मुझे उसके बगैर 
चंद रोजों में ये सौदा हुआ है उल्फत का 
अब किसी चीज़ का नहीं है वुजूद उसके बगैर !!
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खुद का चेहरा भी दिखता नहीं आईने में 
कोई खराबी सी है मेरे इस आईने में 
कब से मुन्तज़िर हूँ मैं बैठा तेरे लिए 
अब तू ये कहता है कि तू है मेरे आईने में
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उसकी तस्वीर अगर काम आती तो रोना क्या था
तस्वीरों के सिवा जिन्दगी में और होना क्या था 
उसका होना ही अगर जिस्म में नहीं होता 
जिन्दगी में फिर कहीं पाना क्या था,खोना क्या था !!
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राह दुश्वार-सी है जिन्दगी की उसके बगैर 
कुछ भी भाए नहीं है उफ़ मुझे उसके बगैर 
चंद रोजों में ये सौदा हुआ है उल्फत का 
अब किसी चीज़ का नहीं है वुजूद उसके बगैर !!
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जिन्दगी चलते-चलते 
रास्ता बदल लेती है क्यूँ
धडकनें भी इक दिन अचानक
साँसे बदल लेती है क्यूँ
चंद रोज़ गुजर जाते हैं
चन्द रोज गुजर जाएंगे 
जिन्दगी भी यूँ ही चल देगी 
हम आखिर बेमतलब ही
रास्ता बदल लेते हैं क्यूँ 
साथ-साथ चलते हुए 
चाल बदल लेते हैं क्यूँ !!
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ओ री राधा कब तलक मैं तुझे देखूं
सुबह से सांझ तलक फिर तुझे सोचूं !!
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जैसे भी हों लोग 
हम भरोसा करते हैं
भरोसा टूट गया तो
आदमी टूट जाएगा
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वो देखो हम सबका चाँद 
किस अदा से हमको देखता है
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जिन्दगी जीनी है
सांस सांस पीनी है
साथ साथ गुजरे जो पल
ख़ास ख़ास वो लम्हे थे 
दिन गुजरे फिर कितने
पास पास कितने हैं वो 
प्यास प्यास प्यासे दिन वो
रास रास रचाते दिन वो 
आज भी याद आते हैं वो
हंसाते हैं रुलाते हैं वो 
जिन्दगी ये कितनी
तेज़ गुजर जाती है
मुश्किल हो कितनी भी 
बहती चली जाती है 
खाइयां हों या पहाड़ 
बहती चली जाती है 
और कुछ कठिन दिनों में 
फिर-फिर याद आती है 
याद कर कर उन दिनों को
प्यास प्यास जीनी है
पल पल दिन और रात 
आस आस जीनी है 
जिन्दगी ये जीनी है 
सांस सांस जीनी है 
आखिरी सांस तक इसको 
रूह तक जीनी है !!
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हे ईश्वर !!
आदमी को सिर्फ एक दिन के लिए 
इक निस्वार्थ प्रेम से भर दे 
ताकि वो समझ सके 
कि उसने अब तक जो किया है प्रेम 
वो निरा कूड़ा था 
और अब उसे 
नयी आदमियत के लिए 
करना ही होगा सच्चा प्रेम !!
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बच्चे से बड़ा होता हुआ आदमी....खुद के साथ एकाकार होना छोड़ देता है.... बस आदमी अपने अंदर झांकना बंद कर देता है....खुद से दूर चला जाता है.....जिन्दगी से दूर चला जाता है....इस तरह जीता हुआ आदमी.....दरअसल मुर्दा हो जाता है !!
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पुरसुकून है वो इतना.....उसे देखकर खो जाता हूँ....किन नजारों में वो ताब है....मैं इस आब में खो जाता हूँ.....मेरे मालिक उसे बनाए रखना.....उसके बदले मैं उधर हो आता हूँ !!
(उधर को क़ज़ा के अर्थ में लिया है)
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बहुत दिनों से परेशां हूँ उफ़ मैं गाफिल 
मौत आए जब क्या दूँ उसे मुहं दिखाई !!
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मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

धर्म के नाम पर मर जाने वाले इंसान को शहीद नहीं कहते



 धर्म कभी-कभी किस तरह आदमी को पगला देता है,यह अभी कुछ दिन पूर्व मैंने देखा.मेरे एक विद्वान मित्र अचानक कुछ दिनों बाद मेरे पास आये और धर्म विषयक चर्चा करने लगे,ऐसा जान पड़ता था कि वे किसी धर्म-विषयक संस्थान में में कोई खास अध्ययन करके आये हैं,उनकी बौडी-लैंग्वेज और उनकी भाषा पूरी तरह लड़ाकू थीऔर उनके मुख से निकलने वाला प्रत्येक कथन जैसे एक आप्त-वाक्य और मजा तो यह था कि अपने हर कथन को अविवादित मान कर चल रहे थे,क्योंकि वे तो धर्म-ग्रंथों का सम्यक अध्ययन और उनपर सम्यक चर्चा जो करे आये थे,उनके द्वारा अपनी हर बात रखने में जो ढीतता थी,वो सामने वाले को कोई विमर्श करने ही नहीं देती थी,ऐसे में किसी के द्वारा अपनी बात किसी को समझा पाना लगभग असंभव ही था और मैं स्वयं भी इस अप्रत्याशित हमले से सन्न और अचंभित !!
खैरघंटों इस एकतरफ़ा विमर्श के पश्चात् अपनी तरह से वो मुझे जो ज्ञान प्रदान कर गए उसके पश्चात् मैं सोच में पड़ गया कि क्या सचमुच धर्म के यही मायने है,जो कि ये मित्र साहब फरमा कर गए हैं,कि वस्तुतः हर धर्म मानवता कि शिक्षा देने वाला है,जैसा कि मैंने समझा है !!
            सचमुच दोस्तों अगर आप धर्म को सिर्फ व् सिर्फ तठस्थ दृष्टि से देखो तो इसमें वाकई कट्टरता के लिए कोई जगह ही नहीं है,बल्कि हम कमजात लोग अपनी अल्प-बुद्धि के कारण धर्म की तरह-तरह की "भयानक" व्याख्याएं कर  इसे एक राक्षस बना देते हैं,सच तो यह है कि धर्म को हम किस तरह से लेते हैं यह हमारी अपनी निजी सोच है और दूसरा इसे किस तरह से ले,यह उसकी अपनी निजी सोच और किसी को भी इस सोच में दखल देने को कोई अधिकार नहीं है,क्योंकि यह भी सच है कि जैसे ईश्वर को कोई नहीं जानता और न ही उसे किसी ने देखा है और इस नाते यह भी कहा जा सकता है कि उसने क्या कहा है यह भी कोई नहीं जानता और ये सब जो ग्रन्थ आदि हैं वे सब मनुष्य के दिमाग की ही उपज हैं और फिर वही बात कि जितने तरह के मनुष्य उतने तरह के विचार और जितने तरह के विचार-समूह उतनी तरह की विचारधाराएँ भी हैं और ये सब विचारधाराएँ खुद को श्रेष्ठ मानने के चक्कर में दूसरी विचारधारा को घटिया या कमतर मानने लगे, यही झगडे का मूल कारण है जो हमारे दिन-प्रतिदिन के व्यवहार में परिलक्षित भी हुआ करता है !!
             मगर मैं दोस्तों, आपसे यही बात कहना चाहता हूँ कि धर्म के नाम पर मर जाने वाले इंसान को शहीद नहीं कहते बल्कि इंसानियत के लिए मर जाने वाले को सच्चा धर्मी कहते हैं !धर्म अपने लिए यह नहीं कहता कि तुम मेरे लिए तलवार भांजो,या गोलियां चलाओ बल्कि धर्म यह कहता है कि दूसरों को इतना अपना बना लो कि उसके लिए भी तुम्हें मरना पड़े तो तुम्हें कोई संकोच नहीं हो !धर्म एक दुसरे की जान लेने का नाम नहीं,बल्कि एक-दुसरे के साथ एक-दुसरे को जीने देने का नाम है !अल्लाह-राम या जीजस सब रहम-दया और करुणा के नाम है जो मानवता का परिपूर्ण रूप हैं ना कि किसी तरह के कट्टरता-पूर्ण धार्मिक खांचे,जिन पर हमारे एक्सीलेटर का दबाव बढ़ जाए तो सारी मानवता का विनाश ही हो जाए !!  

दोस्ती बड़ी कीमती चीज़ है....हम इसको बचाएं कैसे.....हर महफ़िल में आना-जाना चाहते हैं लेकिन॥जाएँ कैसे...!!

जिन्दगी एक ख्वाब की तरह उड़नछू होती जा रही है...वक्त सरपट भागता......जा रहा....!!इस दौड़ में हम कहाँ हैं....इस दौड़ का मतलब क्या है....समझ से परे है॥ उलझने....जद्दोजहद॥खुशी....उदासी..... तिकड़म...हार-जीत और भी ना जाने क्या-क्या....यह खेल- सा कैसा है और इसका मतलब क्या है....समझ से बाहर है...सब कुछ समझ से ही बाहर है तो फ़िर जिंदगी क्या है...और इसके मायने हमारे लिए क्या....ये भी समझ से बाहर ही है....फ़िर हम क्या करें....एकरसता को ही जीतें रहें??.....इसका भी क्या अर्थ ?...अर्थ...अर्थ...अर्थ ....क्या करें...करें...क्या करें॥?













एक पुलक,,,,,,, एक हँसी
कि जैसे हो ..... यही जिन्दगी !!
आँखों में जल लिए बैठा हूँ ,
मुझसे ... रूठी है,,,,,,तिश्नगी !!
होठों पे बस लफ्ज हैं प्यार के ,
दिल्लगी,,,,दिल्लगी,,,दिल्लगी !!
फूल बटोर कर लाया हूँ मैं ,
आती नहीं मगर मुझे बंदगी  !!
जो भी होता है वो होता रहेगा ,
कर भी क्या लेगी यह जिंदगी !!
आसमां जैसे है इक दीवाली 
तारों -ग्रहों की है जैसे फुलझड़ी  !!
इतना सपाट -से तुम रहते हो क्यूँ ,
लगते हो मुझे जैसे इक अजनबी !!
ये लो तुम अपनी प्रीत संभालो ,
अरे जाओ जी अजी तुम जाओ जी !!
तारीकी -सी फैली हुई है क्यूँ ,
जाकर थोड़ी -सी लाओ रौशनी !!
अंधेरे में कुछ जुगनू चमके ,
आज शब् भी इनसे अब ..... खेलेगी !!
ख़ुद में उलझा हुआ है "गाफिल ",
अब रूह इसकी अपने लब खोलेगी !!






 
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