भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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मेहरबान…कद्रदान…पहलवान…मेहमान……भाई-जान...!!!

शनिवार, 15 जनवरी 2011


ए बन्दर…
बोलो सरकार…
सबसे बडे चोर को कहते हैं क्या…
महाचोर सरकार…!
और चोरों के प्रमुख को…?
चोरों का सरदार…!
अगर तू कोई चीज़ चुरा लाये
तो दुनिया चोर तुझे कहेगी या मुझे…
हमदोनों को सरकार…!

लेकिन चोरी तो तूने ना की होगी बे…
लेकिन मेरे सरदार तो आप ही हो ना सरकार…!
ये नियम तो सभी जगह चलता होगा ना बन्दर…
हां हुजूर और जो इसे नहीं मानते हैं…
वो सारे चले जाते है अन्दर…!
अरे वाह,तू तो हो गया है बडा ज्ञानी बे…
सब आपकी संगत का असर है सरकार…!
तो क्या संगत का इतना ज्यादा असर हो जाता है…?
हां हुजूर,एक सडी हुई चीज़ से सब कुछ सड जाता है…!
ये बात तो आदमियों में लागू होती होगी ना बे…?
आदमी पर सबसे ज्यादा असर होता है इन सबका सरकार…!
मतलब किसी के किसी भी सामुहिक कार्य की जवाबदेही…
सिर्फ़ व सिर्फ़ उसके मुखिया की होती है सरकार…!!
मगर आदमी ये बात क्यों नहीं समझता बे बन्दर…?
सरकार,आदमी असल में सबसे बडा है लम्पट…
आदमी है सबसे बडा बेइमान और मक्कार…सरकार…!
और सब तरह के भ्रष्ट लोगों का मुखिया भी…
उसपर अंगुली उठाने पर कहता है खबरदार…!!
तो हुजूर…मेहरबान…कद्रदान…पहलवान…मेहमान…भाई-जान 
ऐसा है हमारा यह बन्दर…
जो कभी-कभी घुस जाता मेरे भी अन्दर....!!
मगर हां हुजूर,जाते-जाते एक बात अवश्य सुनते जाईए…
यह बन्दर…हम सबके है अन्दर…
जो बुराईयों को पहचानता है,सच्चाई को जानता है…!
मगर ना जाने क्यों इन सबसे वो आंखे मूंदे रहता है…!
अपनी आत्मा को बाहर फ़ेंककर किस तरह वो रहता है…?
और अपनी पूरी निर्लज्जता के साथ हंसता-खिखियाता हुआ…
कहीं अपने घर का मुखिया…कहीं किसी शहर का मेयर…
कहीं किसी राज्य का मुखिया…कहीं किसी देश का राजा…
इन बन्दर-विहीन लोगों ने देश का बजा दिया है बाजा…!!!! 
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2 टिप्‍पणियां:

Rajeysha ने कहा…

अपनी आत्मा को बाहर फ़ेंककर किस तरह वो रहता है…?
आत्‍मा को कौन बाहर फेंकता है?, आत्‍मा के बाहर चले जाने पर कौन बचता है? क्‍या आत्‍मा फेंकी जा सकने वाली चीज है? ये कौन सी चीज है जो पूरी निर्लज्‍जता से खि‍खि‍याती हुई हंसती है? ये वाकई है या मन, मैं नाम से कल्‍पनाओं में रची जाती है।

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

Rajey Sha ने कहा…
अपनी आत्मा को बाहर फ़ेंककर किस तरह वो रहता है…?
आत्‍मा को कौन बाहर फेंकता है?, आत्‍मा के बाहर चले जाने पर कौन बचता है? क्‍या आत्‍मा फेंकी जा सकने वाली चीज है? ये कौन सी चीज है जो पूरी निर्लज्‍जता से खि‍खि‍याती हुई हंसती है? ये वाकई है या मन, मैं नाम से कल्‍पनाओं में रची जाती है।......

एक)आत्मा के अनुसार आचरण ना करना....क्या आत्मा को फ़ेंक देने से कम है....??

दो)आत्मा को कोई बाहर नहीं फेंकता...मगर आत्मा के साथ भी तो कोई नहीं रहता....यदि नहीं....तो दुनिया हर वक्त इस तरह के आचरण से सराबोर होती....जिससे दुनिया के अंतिम व्यक्ति का जीना हमेशा हराम रहे....!!यहाँ तक कि हर इंसान...हर दुसरे इंसान को धोखा देने के फिराक में रहे....!!

तीन)अगर सब कुछ कल्पना है तो आत्मा....मैं....तू.....परमात्मा....भी कल्पना है....और सच बताऊँ....??अच्छाई और बुराई भी कल्पना ही है.....है ना भाई....??

 
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